________________ 98 ] सुदर्शन-चरित / प्राप्त हुए इस केवलज्ञानके प्रभावसे सहसा स्वर्गके देवोंके आसन कम्पित हुए, मुकुट विनम्र हुए, महलोंमें फूलोंकी वर्षा हुई, नाना भाँतिके बाजे बजे। इनके सिवा और भी कितने ही आश्चर्य हुए। इन आश्चर्योसे चारों का यके देवोंने अन्तःकृत केवली सुदर्शनको केवलज्ञान हुआ जान लिया / तब उन्होंने अंजलि जोड़कर भगवान्को परोक्ष ही नमस्कार किया और उनके ज्ञानकल्याणकी पूजनको वे तैयार हुए। इन्द्रने तब पहले ही भगवान्के विराजनेको गंधकुटीके रचनेकी कुबेरको आज्ञा की / इन्द्रकी आज्ञासे कुबेरने आकर एक भव्य और सुन्दर सुवर्णमय गन्धकुटी बनाई / उसमें उसने नाना भाँतिके सुन्दर सुन्दर रत्नोंकी जड़ाई की / ध्वजा, सिंहासन, छत्र, चवर आदि द्वारा उसे विभूषित किया। मानस्तंभोंकी रचना की। भगवान्के द्वारा भव्यजन धर्म लाभ करें, संसारके जीवोंका कल्याण हो यह उसका उद्देश्य था / इसके बाद सब देवगग अपने अपने विमानोंपर चढ़कर दिव्य वैभवके साथ जय-जयकार करते, गाते बजाते और दसों दिशाओंको शब्दमय करते भगवान् सुदर्शनके केवलज्ञानकी पूजाके लिए आये। उनके साथ उनकी देवियाँ भी आई / उनका धर्मप्रेम उनके आनन्दमय प्रसन्न चेहरेसे टपका पड़ता था / भगवान् जहाँ गंधकुटीपर विराजे थे, वहाँ आकर पहले ही उन्होंने गंधकुटीकी तीन प्रदक्षिणा की और फिर सब शरीर झुका भगवान्को पंचांग नमस्कार किया। इसके बाद उन्होंने बड़ी भक्तिके साथ