________________ सुदर्शन-चरित। उन्हें शान्ति न पहुँचाकर उनकी क्रोधाग्निको और भड़का देता है। ऐसे लोगोंको समझाना सर्पको दूध पिलानेके बराबर है। यक्षने अपने कहेका कुछ उपयोग होता न देखकर देवीको जरा कड़े शब्दोंमें फटकारा और मुनिका उपसर्ग दूर करनेके लिए वह बोला-पापिनी दुराचारिणी, मुनिपर जो तूने उपसर्ग करना विचारा है, याद रख इस महापापसे तुझे दुर्गतिमें जो दुःख भोगना पड़ेगा वह वचनों द्वारा नहीं कहा जा सकता / इसलिए मैं तुझे समझाता हूँ कि तू मेरे कहनेसे अपने इस दुराग्रहको छोड़ दे / यदि तूने अब भी अपने आग्रहको न छोड़ा तो फिर मुझे भी तुझे इसका प्रायश्चित्त देनेके लिए लाचार हो तैयार होना पड़ेगा।अब भी अपने भलेके लिए समझ जा।. व्यन्तरी उसकी फटकारसे शान्त न हुई, किन्तु क्रोधान्ध हो उससे लड़नको तैयार होगई। दोनोंमें बड़ी भारी लड़ाई छिड़ी। दोनोंहीको विक्रियाऋद्धि प्राप्त, तब उनके बलका क्या पूछना ? दोनोंहीने अपनी अपनी दैवी शक्तिसे अनेक नये नये आयुध आविष्कार किये, अनेक विद्यायें प्रगट की और भयानक लड़ाई लड़ी। उनकी यह लड़ाई कोई सात दिनतक बराबर चलती रही। आखिर व्यन्तरीकी शक्ति शिथिल पड़ गई / यक्षको विनयश्री प्राप्त हुई। व्यन्तरी उसके सामने अब ठहर न सकी / वह भाग गई। इसी समय महायोगी सुदर्शनने योग-निरोध कर क्षपकश्रेणी आरोहण की, जो मोक्ष जानेके लिए नसैनी जैसी है। इसके बाद उन्होंने आत्मानुभवसे उत्पन्न हुए और कर्मरूपी वनको भस्म करनेवाले शुक्लध्यानके पहले पायेका निर्विकल्प निरानन्दमय हृदयमें ध्यान