________________
कुरूप, योनिरोग, अल्पायु, कुष्टादि रोगों से पीड़ित होना पड़ता है। स्त्री-जन्म ही निन्द्य है । उसमें भी विधवापन, अपुत्रत्व आदि विशेष दु:खकर है। तू अपने आपको शील सुगंध से सुंगधित रख ।' नन्दिनी समझ गयी। फिर साध्वी को वंदनकर अपने घर गयी। सावित्री आयी, तब उसे कह दिया 'मैं नीचाचार का सेवन नहीं करूँगी। पुन: मेरे पास मत आना । अगर आयगी तो मेरे भाईयों के द्वारा तेरी हत्या करवा दूंगी।' वह भयभीत होकर चली गयी । फिर नंदिनी रत्नावली, मुक्तावली आदि तप करने लगी। परंतु उस परिव्राजिका का संग प्रीति के कारण नहीं छोड़ा। उसने भी फिर कभी दुःशील के लिए प्रेरणा नहीं दी । एक हजार वर्ष का आयु पूर्ण हुआ । परपाखंडी संस्तव के द्वारा सम्यक्त्व की विराधना के कारण वैमानिक देव सुख से मैं वंचित रही।" इस प्रकार पूर्वभव को यादकर, मुनि को नमस्कारकर, अपना वृतान्त बताकर, सम्यक्त्व ग्रहण किया। चातुर्मास के बाद मुनि विहारकर गये । देवी अब शासन संघ की प्रभावना करने लगी।
लोगों के मुख से उस देवी के प्रभाव को देखकर पिता की चिन्ता को दूर करने हेतु अपने अनुरूप पति प्राप्त करने के लिए रतिसुंदरी उस देवी की पूजा करने लगी। देवी ने उस पर प्रसन्न होकर स्वप्न में कहा-"तू राजा के पास नृत्य कर रही होगी तब स्तंभ से दो पुतली उतरकर जिस वीणावादक को चामर ढोलेगी, वह तेरा पूर्वभव का पति
और इस भव में अर्धचक्री समान तेरा पति होगा ।" रतिसुंदरी जाग गयी। प्रमुदित होती हुई अर्हन्त की पूजाकर देवी की पूजा की। फिर उस दिन से उसने पूर्वभव के पति के अलावा दूसरों को देखना भी बंद कर दिया। दास भी अब उसके घर में प्रवेश नहीं कर सकते थे।
कुछ समय के बाद उस नगर में विजया नाम की एक नर्तकी ने आकर नगर में उद्घोषणा की कि मुझे नृत्य में जो जीते, उसकी मैं दासी बनूं । और मैं जीतुं तो उसे दासी बनना होगा। कोई उससे