________________
मुकाबला करने को तैयार न हुआ । राजा को खेद हुआ। इस प्रकार पिता को खेदित देखकर रतिसुंदरी ने कहा “मैं उसे जीत लूंगी।" परंतु पुरुषों के बिना निर्णय कैसे होगा ? तब राजा ने कहा “पुत्री ! पुरुषों को दूर रखकर पिता के आगे तू नृत्य कर । फिर पिता को प्रणामकर नृत्य का दिन निश्चितकर वह अपनी माँ के पास गयी। फिर नृत्य के दिन राजा ने विजया को बुलाया । रतिसुंदरी भी सुखासन पर आरूढ़ होकर नृत्य के सामान सहित वहाँ जा रही थी । मार्ग में मन में नाट्यानुरूपा वीणावादिका नहीं है, ऐसी चिंता कर रही थी । मार्ग में प्रतिहारिणीयों के द्वारा पुरुषों को दूर किये जाते देखकर श्री विलास ने कौतुक से पास में खड़े एक व्यक्ति से पूछा-'यह क्या है ? उसने | रतिसुंदरी का वृत्तांत बताया । वह सर्व कला-विशारद नाट्यावलोकन के लिए और कौतुक देखने के लिए पुरुष का प्रवेश असंभव मानकर, स्त्रीरूप बनाकर, कहीं से भी वीणा लाकर उस समूह में मिल गया। वह रतिसुंदरी के साथ राजसभा में आ गया। फिर राजा अपने निर्णायक सदस्यों के साथ सभा में आया । नृत्य देखने आने वाले पुरुषों को किंचित दूर बिठाये। फिर राजा ने विजया को नृत्य के लिए आदेश दिया। उसने भी गीत-वाद्य लय युक्त मनोहर नृत्य प्रारंभ किया । चित्रैकरसात्मक सभी सभा को रंजन करती हुए बांस, भाले, तलवार, क्षुरिका आदि के द्वारा भी नृत्य किया। फिर चावल के पुंज पर सुई रखकर, उस पर पुष्प रखकर नृत्य किया। प्रत्येक नृत्य में राजादि द्वारा बहुत दान दिया गया । उस समय की उसकी भावभंगिमा अंगली आदि में जो-जो दोष थे वे सब रतिसुंदरी ने उन निर्णायक पंडितों को बताये, तब उन्होंने भी उसके उन दोषों को स्वीकार किया । फिर राजा ने रतिसुंदरी को आदेश दिया । विजया ने जो-जो नृत्य किये थे । वे | सब नृत्य रतिसुंदरी ने देवों को भी दुर्लभ इस प्रकार किये । उसके नृत्य के समय स्त्रीवेषधारी जयानंदकुमार ने वीणा बजायी । उस वीणा
८८