________________
ने आकर 'ज्ञानी गुरु श्री धर्मयशमुनिराज सपरिवार पधारे हैं' ऐसे समाचार सुनाये । तब कुमार के वचन से सभी वहाँ वंदन एवं धर्मश्रवण करने गये । सविस्तार धर्म और उसके प्रभाव को श्रवण कर सम्यक्त्वादि धर्म स्वीकारकर अपने-अपने स्थान पर गये । राजा राजपुत्र राजवर्ग प्रजा जयानंदकुमार के वृत्तांत को देखकर कुमत को छोड़कर जिनधर्म में ही रत हो गये । इस प्रकार कुमार धर्ममय समय पसार करता हुआ सर्व लोक में (जगत में ) प्रसिद्ध हो गया ।
जयानंदकुमार शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता हुआ अपने गुणों से प्रजा को प्रसन्न करता था । एकबार श्रीवर्धनकुमार आदि सौ पुत्रों के साथ जयानंद राजसभा में बैठा था । उद्यानपालक ने आकर कहा "राजन्! आपके उद्यान में एक कोल (सुअर) आकर उद्यान नष्ट प्रायः कर रहा है । वह आप के उद्यान रक्षकों को भी डरा रहा है। ऐसा सुनकर राजा उसे मारने के लिए जाने लगा । तब उसके पुत्रों ने उसे विनयपूर्वक रोका और स्वयं गये । जयानंद ने तो पराक्रमी होने पर भी सामने पशु होने से उपेक्षा की। फिर भी वह कौतुक से वहाँ गया । राजपुत्रों ने उस कोल (सुअर) को देखकर बाणों की वर्षा की, पर वह कोल इस प्रकार उछलता था कि वे | बाण निरर्थक सिद्ध होने लगे । उसने हस्ति, अश्व आदि को भी गिरा दिये । अपने नखादि से वीर हृदयों को भी हरा दिया । राजकुमारों को व्याकुल देखकर जयानंद उसको शस्त्ररहित और भूमि पर देखकर शस्त्र छोड़कर, अश्व छोड़कर असि को कमर में बांधकर उसके सामने गया । कोल (सुअर) दौड़कर कुमार के ऊपर गिरने आया तब एक मुष्टि के प्रहार से उसके दांतों के टुकड़े कर दिये । भूमि पर गिरते समय उसको हाथों से पकड़कर आकाश में घूमाकर सात तालवृक्ष जितना दूर फेंका । वह भी आक्रंदन करता हुआ हड्डी और नख तूटा हुआ जंगल में प्रविष्ट हो गया । तब जयानंदकुमार
६३