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तलवार (शत्रु पर विजय प्राप्त करनेवाली) और कष्टहर मणि देकर स्वस्थान गया । उस वृत्तांत को देखकर प्रजा ने राजा की अधिक स्तुति की । राजा भी पुण्यानुभाव से राज्य सुख को भोग रहा था । इस प्रकार उस राजा ने खड्ग के द्वारा अनेक राजाओं को वश में किया और मणि से अनेकों पर उपकार करता हुआ। सम्यक्त्व सहित अणुव्रतों का पालन करता हुआ । सात क्षेत्रों में वित्त का विनियोग करता हुआ आयुष्य पुर्णकर देवलोक में गया ।
जयानंदकुमार ने कहा "इसलिए जिस नगर में सत्यवादी उत्तम पुरुष रहते हैं, वहाँ जाकर उत्तम पुरुष को पछेगे । उस समय विवाद का निर्णय होने पर शर्त का पालन करेंगे।"
दोनों चलते हुए विशालपुर नगर में आये । वहाँ उद्यान में विद्याविलास नामक महाशय कलाचार्य को देखा । वे पाँचसौ राजपुत्रों को धनुर्वेद आदि कला पढ़ाते थे । जयानंद ने उनको शास्त्र विशारद मानकर सिंहसार के साथ जाकर विवाद के विषय में प्रश्न किया । कलाचार्य ने कहा "सर्व शास्त्रवेत्ताओं का यह मत है कि धर्म से इहलोक परलोक में सुख और अधर्म से दु:ख मिलता है । यह सुनकर जयानंद हर्षित हुआ। सिंहसार का मुख म्लान हो गया । वे दोनों कलाचार्य के पास कलाध्ययन करने रह गये । जयानंद ने विनयादि गुणों से कलाचार्य और छात्रों का स्नेह प्राप्त कर लिया । सब कलाएँ अल्पविधि में सीख लीं । अब वह कलाचार्य के निर्देश से छात्रों को अध्यापन करवाता है । इससे वह सभी को प्रिय हो गया । सिंहसार जयानंद से स्पर्धा करते हुए अध्ययन करता था। पर थोड़ी कला ही ग्रहण कर सका, क्योंकि विद्या और गुण भाग्यानुसार प्राप्त होते हैं ।"