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वहाँ का राजा विशालजय है। वह छः छः महिने में छात्रों की परीक्षा लेता है । परीक्षा के समय राजा वहाँ परीक्षा लेने आया। तब कलाचार्य ने राजा के सामने विद्यार्थियों को बिठाकर तालवृक्ष पर एक 'मोरपिच्छ' रखकर कहा "तुम क्या-क्या देखते हो?" अनेकोंने एक-एक करके प्रत्युत्तर दिया की हम तालवृक्ष, शाखा और मयूरपिच्छ देखते हैं । कलाचार्य ने उनको बैठने को कहा। फिर जयानंद से पूछा। "हे वत्स! तु क्या देखता है? तब उसने कहा"मैं मयूरपिच्छ का मध्यभाग देखता हूँ। हर्षितगुरु ने उसे बाण चलाने का आदेश दिया। उसने भी मध्यभाग छेद दिया । फिर सौ पद्मपत्र के गुरुकथित भाग को असि से छेद दिया। दूसरे भाग को कुछ नहीं हुआ । हाथ से चक्र छोड़कर सात तालपत्र को छेदे। दूर रही शिला को शक्ति से चूर्ण कर दी । अश्वयुद्ध में हजारों योद्धाओं को जीत लिया । अन्य अनेक कलाओं की परीक्षा में उसको सर्वोत्कृष्ट जानकर विस्मित राजा ने पूछा 'यह कौन है?' कलाचार्य ने कहा "ये दोनों भाई क्षत्रिय और वैदेशिक है । पढ़ते है। इतना जानता हँ अधिक नहीं ।" फिर राजा ने उत्तम कला-गुण जानकर लक्षणों को देखकर निर्णय किया कि ये कोई राजकुमार हैं ।
सब छात्रों का सत्कारकर और अनेक कलाओं का अभ्यास करने हेतु प्रेरणा देकर कलाचार्य की पूजाकर राजा अपने महल को गया । जयानंद ने कलाचार्य के पास गीत नाट्य आदि ७२ कलाओं की शिक्षा क्रमशः प्राप्त की । अपनी निपुणता से छात्रों को पढ़ाकर गुरु को विश्राम भी देने लगा । अपने गुणों से वह नगरजनों का प्रिय भी हो गया ।
इधर राजा ने उसकी परीक्षा के लिए पड़ह बजवाया कि मेरे हाथी को जो तोलेगा उसको उसका इच्छित देश दूंगा । जयानन्द ने गज तोलने की चुनौती स्वीकार की । फिर उसने एक नौका में गज को चढ़ाया और नाव सरोवर में छोड़ी। वह नौका जल में