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गृहों से रम्य गगनवल्लभ नगर का, प्रजा की सुरक्षा करने में पराक्रमी, बुद्धिशाली विद्याधरों का अग्रणी सहस्रायुध नामक स्वामी था । उसकी शीलादि गुणान्वित प्रीतम में अनुरक्त करुणा की देवी समान मालिनी नाम की रानी थी। उसने एक दिन स्वप्न में चक्र मुँह में प्रवेश करते देखा । नरवीर राजा का जीव गर्भ में आया । रानी ने राजा से कहाराजा ने कहा 'तुझे चक्रवर्ती के समान पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी ।' गर्भकाल में माता ने आहार-विहार पर पूर्ण ध्यान दिया। । वर्तमान कालीन परिस्थिति पर आप लोगों को विशेष ध्यान | देना चाहिए। कल्पसूत्र में गर्भ के प्रतिपालन पर विवेचन मिलता
है। गर्भ का प्रतिपालन बालक के भविष्य में अत्यंत उपयोगी होता | है। माता-पिता अवश्य ध्यान दें ।
गर्भकाल पूर्ण होने पर शुभमुहूर्त में दिशाओं को प्रकाशित करते हुए सर्व लक्षण संपन्न पुत्र का जन्म हुआ । सहस्रायुध ने वर्धापन | कर उत्तमोत्तम रीति से जन्मोत्सव मनाया स्वप्नानुसार 'चक्रायुध' नामकरण किया । पांच धावमाताओं से लालित-पालित प्रजा के मनोरथों के साथ, बालक कल्पवृक्ष के समान बड़ा हुआ । समय पर सकल कला-कुशल हुआ । पिता ने उचित समय पर प्रज्ञप्ति आदि सहस्र| विद्याएँ दी । कुमार ने भी यथाविधि विद्याएँ सिद्ध कर ली । पूर्व के | प्रबल पुण्योदय से दिव्य शस्त्र भी सिद्ध हो गये। पिता ने हजारों कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण करवाया । कुमार संसारिक सुखों को भोगता था ।
एकबार चारणश्रमण भुवनानंदन नाम के ज्ञानी गुरु सपरिवार पधारे । राजा देशना श्रवणार्थ गया । वंदनकर यथास्थान पर बैठकर देशना सुनी। सोचा, 'चक्रायुध राज्यधुरा वहन करने की योग्यतावाला हो गया है। अब मुझे मेरा आत्मकल्याण करना चाहिए।' उसने चक्रायुध का राज्यभिषेककर गुरु के पास चारित्र ग्रहण किया। चक्रायुध