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होता है | चारित्रधर्म का प्रतिपालन करने के भाव, पूर्व में जिनेश्वर प्रभुकी द्रव्यभाव से भक्ति की हो, उसी आत्मा में प्रकट होते हैं । हम यहाँ एक ऐसे आत्मा की कथा प्रारंभ करने जा रहे हैं। जिसने लोगों को जिनपूजा करते देखकर भगवंत के आगे पुष्प फल आदि चढ़ाने प्रारंभ किये। उस दिन से दिनों दिन उसकी भौतिक उन्नति होने से प्रभु पर प्रीति बढ़ी और उसने प्रभु पूजा में ज्यादा ध्यान दिया । जिसके फल स्वरूप, नन्दन माली से मतिसुंदर मंत्री, और मतिसुंदर मंत्री से जयानंद राजा बनकर चारित्र लेकर, केवलज्ञानी बनकर, मोक्ष में गया ।
इसके पूर्व के पृष्ठों में नंदनमाली और मतिसुंदर मंत्री का | जीवन चरित्र दिया है। अब मतिसुंदर जयानंद राजा होकर किस प्रकार धर्मोद्योत कर मोक्ष में गया । उस वर्णन को दिया जा रहा है ।
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के मध्य में वैताढ्यपर्वत है। वह अत्यंत शोभायमान है । पूर्व पश्चिम समुद्र से संस्पृष्ट है। जहाँ अरिहंत के गुणगान करनेवाले किन्नर युगलों के गीत के शब्दों से गुफाएँ भी गाती हों वैसा प्रतिभासित होता है। जहाँ प्रथम दोनों श्रेणी में दक्षिणदिशि में पचास नगर और उत्तर श्रेणी में साठ नगर हैं। उन नगरों के घर स्वर्ण रत्नमय होने से अत्यंत शोभायमान हैं । दूसरी श्रेणी युगल में सौधर्मेन्द्र के लोकपाल, अभियोगीक देवताओं के नाना प्रकार के भवन मणिमय हैं । उस पर्वत के शिखर पर सिद्धायतन सिद्धकुट आदि नौ कुट हैं। देव - अप्सराओं की क्रिड़ा से वह स्थान शोभायमान है । सिद्धायतन में देव विद्याचारण, जंघाचारण, मुनि, विद्याधर आदि भक्ति करने आते हैं ।
वैताढ्यपर्वत की उत्तर श्रेणी में मणि और स्वर्ण से सदा उद्योतित
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