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नौमि-श्री-नेमिनामानं, जिनं सद्ब्रह्मचारिणाम् । राजीमती-प्रशास्तारं, रैवताचल संस्थितम् ॥
ब्रह्मचारी राजीमती व प्रतिबोधक, रैवताचल पर बिराजमान श्रीनेमिजिनेश्वर को प्रणाम करता हूँ ।
तह तह पयट्टिव्वं, जह जह रागदोसा विलिज्जंति । एस जिणाणमाणा संगहिया पुव्व सूरिहिं ॥
जिनेश्वर प्रभु के शासन में आत्म उद्धार का कार्य ही सर्वोत्तम कार्य है। आत्मोद्धार का अर्थ-अनादि कालिन आत्मप्रदेश पर रहे हुए कर्म परमाणुओं को दूर करना । संग्रहित कर्म परमाणु आत्मा को पुनः कर्म परमाणु संग्रहित करने के लिए प्रेरित करते हैं। आत्मा कर्म से प्रेरित होकर नये-नये कर्मबंधन करता रहता है। कर्मबन्धन की क्रिया मुख्यतया दो कारणों से होती है। वे कारण हैं-राग-द्वेष । संसारी आत्मा राग-द्वेष के आश्रित होकर अनेक प्रकार की क्रियाएँ करती रहती है। उस परिभ्रमण से आत्मा को मुक्त करना, अर्थात् राग-द्वेष से दूर होना ।
वास्तव में राग-द्वेष को दूर करने का मार्ग जिनशासन ही प्रशस्त करता है ।
जिनशासन का अर्थ है जिनाज्ञा का पालन । जिनाज्ञा का पालन ही राग-द्वेष से मुक्त करवाता है । उपरोक्त शोक में जिनाज्ञा का पालन कब हुआ कहा जाय, इसका स्पष्टीकरण महोपाध्याय श्री यशोविजयजी ने किया है ।
"वैसा आचरण किया जाय जिससे राग-द्वेष मंद होकर क्षय हो जायँ । यही जिनाज्ञा का अर्थ पूर्वाचार्योंने किया है ।" जिनाज्ञा का पालन संपूर्ण रूप से चारित्रधर्म स्वीकार करने से ही