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से सम्मानितकर मंत्री के घर भेजा। राजा ने लेखवाहक के साथ पुरोहित को दंडितकर देश से निकाल दिया ।
मंत्री और उसकी पत्नियों ने देवी का उपकार मानकर धर्म के महात्म्य की बार-बार अनुमोदना की ।
एकबार राजा ने अपने प्रिय पात्र मंत्री से कहा "तेरी पत्नियाँ दोष युक्त हैं, तो तू दूसरा विवाह क्यों नहीं करता ? तब मंत्री ने कायोत्सर्ग और देवी आगमन की बातकर के राजा के मन में धर्म का अधिक महात्म्य बिठाया । राजा ने सोचा "अहो! मेरे भाग्य से देवी ने मुझे भस्मसात नहीं किया। देवी ने मुझ पर अनुकंपा की ।" राजा ने उन तीनों की, धर्ममहात्म्य की अनुमोदना की, और मंत्री के पास पुनः अपने अकार्य की क्षमा की । इस प्रकार सम्यक्त्व आदि धर्म की महिमा से प्रजा पुलकित होकर प्रशंसा के पुष्प बिछाने लगी और धर्माचरण करने लगी ।
एकबार राजा ने गुरु के पास परस्त्री की इच्छा से जो कार्य किया उस पाप की आलोचना लेकर बहुत कर्मो का क्षय कर दिया । तीर्थयात्रादि पुण्यकार्य किये । अनुकंपा दान दिया । अपने राज्य में अमारी का प्रर्वतन कराया । इस प्रकार राजा अपना समय निर्गमन कर रहा था ।
मंत्री भी उत्कृष्ट भाव से उपरोक्त पुण्य कार्य शक्ति अनुसार प्रियाओं के साथ करता था । राजा और मंत्री प्रतिदिन जिनेश्वरों की त्रिकाल पूजा, दोनों समय आवश्यक पर्वतिथि पौषध करते थे । मंत्री पत्नियाँ भी शक्ति अनुसार जिनभक्ति आदि धर्माचरण करती थी ।
एकबार अतिबल केवलि भगवंत अनेक मुनियों के साथ उद्यान में पधारे । उद्यान पालक ने राजा को समाचार दिये ।