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राजा, मंत्री नगरजन सभी वंदन देशना श्रवणार्थ आये । सभी ने त्रिप्रदक्षिणा की और वंदनकर यथायोग्य स्थान पर बैठे । केवलज्ञानी ने देशना में शरीर की अनित्यता, लक्ष्मी की चंचलता बताकर इन दोनों का उपयोग धर्म मार्ग में सत्वर करने को समझाया । राजा ओर मंत्री अधिक संविग्न हुए ।
मंत्री ने पूछा "हे भगवंत! मैने पूर्व में कौन से पुण्यपाप के कार्य किये उसे बताने की कृपा करे ।" तब सभा को बोध हो, जिनशासन की प्रभावना हो, इसलिए मंत्री का पूर्वभव केवलज्ञानी ने सुनाया ।
इसी भरतक्षेत्र में रत्न संचय नगर में नरदत्त नामक राजा था । उस राजा के नन्दन नामक मालि था । उसकी सुनंदा और सुभगा नामक दो पत्नियाँ थी। नन्दन राजा के उद्यान में से पुष्पों की मालाएँ, देवपूजा और अंगभोग के लिए पूर्ति करता था । कभी कभी पुष्पों के मुकुट, अलंकार आदि बनाकर राजा को देता था । उस उद्यान में एक चैत्य में युगादीश को जन समूह से पूजित देखकर सोचा ये कोई महान् देव हैं, जिससे इतने लोक इनकी पूजा करते हैं ।" उस दिन उसने भगवान के सामने मनोहर फल चढाये । और बाद में राजा को पुष्प अर्पण करने गया । उस दिन राजा उस पर अधिक प्रसन्न हुआ अधिक भेंट दी । नन्दन ने इसे प्रभु पूजा का फल माना । उस दिन से प्रभु के गुणों से अनभिज्ञ भी प्रतिदिन पुष्प फलों से ज्यादा पूजा करने लगा । इधर राजा भी उस पर खूब प्रसन्न रहने लगा । राजमानादि अधिक देखकर उसकी पत्नियाँ भी प्रभु पूजा में मग्न होने लगी । कहा है- "दृष्टफल में कौन प्रमाद करें" उस नन्दन का एक नौकर था । सुकन्ठ नामा । एक बार पुष्प ले जाते हुए देरी से पहुँचने पर नन्दन ने कहा "क्या तुझे कैद में