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| में भ्रमण कर विप्र होकर तापस हुआ। तप कर ज्योतिष्क देव हुआ। वहाँ से यह सिंहसार तेरा बड़ा भाई हुआ। उसको वसुसार के भवमें तूने 'चंडाल' कहा था। इस भव में इसने तुझ पर चंडाल का दोषारोपण किया। वह क्रूर प्रकृति, सर्वदोषयुक्त, निर्गुणी, धर्मद्वेषी, तेरे द्वारा अनेक. उपकार करने पर भी पूर्वभव के वैर से तेरी चक्षु निकालना, कलंक देना आदि कार्य उसने किये । इस प्रकार पुण्य-पाप के फल को श्रवणकर प्रत्येक आत्मा को धर्म में उद्यम करना चाहिए ।"
जयानंद राजा को और उसकी दोनों पत्नीयों को जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ । फिर उसने भगवंत से पूछा "मेरे पिता और पितृव्य की दीक्षा के पश्चात् उनके मोक्ष तक का वर्णन सुनाने की कृपा करावें । तब मुनि चक्रायुध ने कहा "दीक्षा के बाद उन्होंने निरतिचार चारित्र का पालन किया । जिनशासन में कुशल हुये । अनेक आत्माओं को सहायक होते हुए आयु पूर्णकर, श्री जयराजर्षि सनत्कुमार देवलोक में, और श्रीविजयराजर्षि माहेन्द्रदेव लोक में महाऋद्धिवाले देव हुए हैं । वहाँ देवों के सुख भोगकर विदेह में पृथक् पृथक् देश में जन्म लेकर राज्य संपदा भोगकर चारित्र लेकर, कर्म खपाकर, मोक्ष सुख को प्राप्त करेंगे ।" ।
फिर पूछा "स्वामिन् ! मेरे, मेरी पत्नियों के, और सिंहसार के आगे का स्वरूप बताने की कृपा करावें ।"
मुनि चक्रायुध ने कहा "तू, मैं और तेरी दोनों पत्नियाँ | इसी भव में मोक्ष प्राप्त करेंगे । तू चारित्र लेकर, केवलज्ञान पाकर, अनेक भव्य आत्माओं पर विशेष उपकार करनेवाला होगा । किंचित् न्यून एकलाख वर्ष केवली पने में विचरकर सर्वायु चौराशी लाख वर्ष का पूर्णकर मोक्ष में जायगा ।"