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'आप कहो तो हम कुमार को समझाकर आपके पास ले आयें। वह सरल है। तभी तीनों पुत्रियाँ आयीं । पुत्रियों ने पिता से पूछा यह क्या है? तब पिता ने सिंहसार का कहा हुआ विवरण कहा। तब | पत्रियों ने कहा "पिताजी! आपके जामाता दिव्य प्रकृति, उत्तम सत्य, शौर्य, धैयादिगुणवाले, चक्री लक्षण युक्त, अगर अकुलीन होंगे, तो कुलीन कौन होगा? आप दुष्ट पुरुषों की वाणी से भ्रमित न हों। सर्वार्थ साधक चिंतामणि समान प्राप्त जामाता को अविवेक से क्यों प्रतिकूल कर रहे हो?" राजा ने कहा "तो तुम किसी भी प्रकार से अपने पति के कुल, वंश आदि ज्ञातकर आओ । पुत्रियों ने आकर अपने पति से स्नेह, विनय एवं भक्तिपूर्वक कुल पूछा, तब उसने कहा मेरे भाई सिंहसार से पूछ लो । तब तीनों ने कहा "पतिदेव! इस दुष्ट ने ही तो आप पर चंडाल पने का आरोप लगाया है।" | पत्नियों ने पिता द्वारा कथित सारा वृत्तांत सुनाया । कुमार ने सोचा यह इतना दुष्ट है ? इतने सत्कार का यह परिणाम? मैंने तो इस पर कोई द्वेष नहीं किया ।' कुमार ने कहा-यह औषधि ले जाकर किसी | पुतली के मस्तक पर रखना। उससे जो पूछना हो, वह पूछना । वह सब सही सही कह देगी। तब पत्नियाँ पति से औषधि लेकर राजा
के पास आयी। सभी लोगों के सामने एक पुतली के मस्तक पर | औषधि रखी। उसने कहा-विजयपुर का राजा विजय उसका यह जयानंद नामका पुत्र है। सबने जय-जयकार की। राजा ने कुमार से
और पुत्रियों से क्षमा याचना की। राजा ने एकबार मंत्री से कहा "यह इंद्रजाल तो नहीं है। कहीं पंचालिका बोलती सुनी है?' मंत्री ने कहा "राजन्! "मणि-मंत्र औषधि का प्रभाव अचिन्त्य है। फिर भी आप शतबुद्धि मंत्री के पुत्र चंद्रबुद्धि को वहाँ भेजकर निर्णयकर लीजिएगा । वह वहाँ ज्योतिषी बनकर गया । राजा ने पूछा “आप कौन है?" उसने कहा “मैं सुरंगपुरवासी अष्टांग निमित्त का ज्ञाता