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बनाया, विजया को शबरी बनायी दोनों का रूप दर्शनीय बनाया। फिर औषधियों का थैला बनाकर नगर में चला । एक सेठ के पास का खाली मकान किराये पर माँगा । उसने अशुचि का कारण बताकर मना किया । तब शबर ने आधा लाख मूल्य का रत्न किराये का देने लगा। तब सेठ ने सोचा 'यह तो कुबेर जैसा धनी दीखता है।' उसने कहा "आप खुशी से रहो। शुचि-अशुचि गुणों से संबंधित हैं। इस मनोहर चित्रशाला सहित पूरा महल आपका है। वह प्रिया सहित उस चित्रशाला में रहा। सेठ ने गृहोपयोगी सारी व्यवस्था सुलभ करा दी। वह वहाँ पत्नी के साथ सुखोपभोग करता रहा, दिव्यौषधि के द्वारा अनेक लोगों को रोग मुक्त करने लगा । वह कुछ लेता नहीं था ।। कभी-कभी पत्नी सहित किसी नाटक मंडली का नाटक देखता, तो कभी नृत्यांगनाओं का नाच देखता, कभी गायकों के गायन सुनता, और उन्हें यथेष्ट पुरस्कार देता था । कृतज्ञ लोकों ने उसे 'शबर वैश्रवण । नाम से पुकारना प्रारंभ किया। एकबार नगर के बाहर जयानंदकुमार ने आर्यवेदों को पढ़ानेवाले एक पंडित को देखा । शबर के रूप में वेदाध्ययन नहीं करायेंगे, इस कारण उसने वणिक को किराये के अलावा और धनादि देकर खुश किया । वहाँ से नगर बाहर जाकर एक विप्र का रूप बनाकर पत्नी सहित नगर में आया । दूसरा घर किराये से लेकर रत्न दान से गृहपति को खुश करने लगा । दास-दासी की परीक्षाकर उनको भी अपने घर में रखा । फिर उपाध्याय के पास गया। उनको भी रत्न भेट में रखकर उनके पास अध्ययन करने लगा। अल्पावधि में सारे वेदों का अध्ययन कर लिया । फिर पुनः रत्नों से गुरु की पूजाकर अन्य छात्रों का आदरकर स्व स्थान पर आया । स्वयं को ब्रह्मवैद्य के रूप में बताता था। अब वह लोगों में ब्रह्मवैश्रवण' के नाम से प्रख्यात हो गया। राजकुमार का रोग मिटाने हेतु प्रतिदिन पटह बज रहा था। पर स्वंय मौन था । नगरजनों पर वह' औषधि दान से