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उपकार करता था । लोगों में चर्चा चलती थी । क्या यह देव है ? क्या विष्णु है ? कुबेर है ? अद्भुत भाग्यशाली यह कौन है ? औषधि, दान और सभी कलाओं में इसके समान अन्यत्र कहीं नहीं देखा। पहले इसके जैसे गुणवाला शबर वैश्रवण आया था। क्या यही रूप परावर्तन कर तो नहीं आया ? एकबार वह राज मार्ग पर क्रीड़ा करता हुआ वीणा बजा रहा था । गायन रसिक लोग इकट्ठे हो गये थे। एक कुब्जा दासी पानी भरने जा रही थी । वह गीत -गान से आकर्षित वहाँ आयी । विप्र ने उसे देखकर पूछा " तू कौन है ?" उसने कहा " भोगवती महारानी की दासी हूँ।" ब्रह्मवैश्रवण ने पूछा तू कुब्जा कैसे है ? उसने कहा 'वात व्याधि से ' । वैश्रवण ने कहा " क्या इस नगर में तेरी चिकित्सा किसीने नहीं की? उसने कहा " " बहुत वैद्यों ने इलाज किया पर मैं मंद भाग्यवाली होने से कोई फल न मिला।" तब उसने उसको अपने समीप बुलाकर मुष्टि से उस स्थान पर घात करके उसको सीधी कर दी। वह प्रमुदित होकर बोली । " तू अलक्ष्य स्वरूपवाला नगरजनों के भाग्य से यहाँ आया है । अतः राजा के घर आ और उनके पुत्र को निरोग कर दे। नगरजनों से तो तू पूज्य हो ही गया। अब राजकुल में भी पूजनीय हो जा ।" विप्र ने कहा " तू जा । मुझे राजकुल से कोई प्रयोजन नहीं है ।" वह विस्मित हुई रानी के पास आयी। रानी ने पूछा " तू कौन है ?" उसने कहा "स्वामिनि मुझे नहीं पहचानी । मैं वही कुब्जा दासी हूँ ।" रानी ने विस्मित होकर पूछा " तू सीधी कैसे हो गयी ।" उसने कहा " ब्रह्मवैश्रवण ने औषधि से सीधी कर दी ।" रानी ने कहा “वह कहाँ है ?" दासी ने कहा राज मार्ग पर है ।" रानी ने कहा " वह राजपुत्र को निरोग कर सकेगा या नहीं ?" दासी ने कहा "विश्व में ऐसा कोई कार्य नहीं जो करने का उसमें सामर्थ्य न हो। " तब रानी ने जाकर राजा से निवेदन किया । राजा ने अपने प्रधान पुरुषों को भेजकर उसे निमंत्रित किया । औषधि की ग्रंथि के साथ, यज्ञोपवीत
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