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________________ नहीं कर सकता है । वैद्यों ने अनेक उपचार किये, पर सब व्यर्थ । सब प्रीतिमति पर शंका करने लगे । उसके वहाँ भोजन के बाद ऐसा हआ है। एक नैमित्तिक से पूछा । उसने कहा "एक नारी के द्वारा यह दुष्ट चूर्ण प्रयोग किया गया है। दिव्य औषधि के प्रभाव से ही निरोग होगा । दूसरी औषधियाँ निष्फल हैं। दासी द्वारा प्रीतिमति और कपालिनी के संग का वर्णन जाना । कपालिनी को बुलायी । ताड़ना दी । उसने 'रानी के द्वारा कहने पर मैंने उसे चूर्ण दिया' ऐसा कहा । राजा ने रानी को तिरस्कृतकर निकाल दिया । वह अपने पिता के घर चली गयी, वहाँ भी लोकों के द्वारा तिरस्कृत होकर अपमान रूपी कटुफल भोग रही है। घोर पाप का इसलोक और परलोक में कटुफल भोगना ही पड़ता है। दुर्बुद्धि व्यक्ति धन-भोग, सामग्री आदि के लिए पापकार्य करता है। धनादि मिले या न मिले, पर इस लोक या परलोक में निश्चय से कटफल तो मिलता ही है। राजा प्रजा सभी परस्पर कहते हैं-'धिक्कार है ऐसे कृत्य करनेवाली स्त्री को।' राजा अपने नगर में एक पटह बजा रहा है। कि जो कोई व्यक्ति मेरे पुत्र को रोग मुक्त करेगा उसे एक देश के साथ कमलसुंदरी पुत्री का विवाह करूँगा। एकबार प्रेम से मामा के बुलाने पर माँ के साथ मैं वहाँ गयी थी वहाँ मैंने यह सारी बातें जानी थी। कमलसुंदरी मेरे साथ एक पति की इच्छा करती थी । पर अब वह भाई के दुःख के कारण पिता से कुछ कह नहीं सकती । परंतु हे स्वामिन् ! आपका आश्चर्यकारी प्रभाव देखकर मुझे लगता है, आप मेरे भाई को निरोग कर सकोगे । आप कल्पवृक्ष के समान इच्छित देने में समर्थ हैं। एक तो परोपकार होगा। दूसरा धर्मशील कुमार सुखी होगा । राजा प्रजा सुखी होगी। कमलसुंदरी की इच्छा भी पूर्ण होगी। अतः आप कमलपुर की ओर प्रयाण करें।" पत्नी की बात सुनकर कुमार ने पत्नी सहित उस पल्यंक को कमलपुर जाने का आदेश दिया । कमलपुर के बाहर आये। पल्यंक को छुपा दिया। उसने स्वयं का शबर का रूप
SR No.022703
Book TitleJayanand Kevali Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2002
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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