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को भी देखकर मंत्री बोला "हे मित्र ! मैंने और मेरी पत्नियोंने अज्ञान से अन्धे होकर रोष में आकर, कटु वचनों से मुनि का अपमान किया हैं । हम जैन ऋषियों के आचार के अनभ्यासी होने से उनके आचार को नहीं जानते । अब शाप के भय से भयभीत हैं।"
धर्मरुचि ने कहा "कृपालु मुनि किसी को शाप नहीं देते । परंतु उनकी अवहेलना इस भव और परभव में पीड़ादायक होती है । इसलिए उनके पास जाकर अपराधों की क्षमायाचना करनी चाहिए।"
मंत्री ने कहा 'आपने कहा वैसा हम सब करेंगे ? परंतु हमारे द्वारा दिया जाने वाला आहार उन्होंने क्यों नहीं लिया ? इस विषय में आप कुछ जानते हो तो कहो, जिससे उनके पास जाकर हमारी अज्ञानता की क्षमायाचना कर सके।" धर्मरुचि ने कहा "आहार किस प्रकार वहोराते थे, मुझे बताओ तो मेरी जानकारी होगी, उतना कह सकूँगा" मंत्री ने सब बातें बतायी। क्षीर के छीटें जहाँ पड़े थे, वहाँ चीटियाँ आयी थी, उसे दिखाकर कहा इस जीव विराधना की संभावना के कारण क्षीरान्न नहीं लिया। अग्निकाय जीवों की विराधना के कारण कूर (चावल) नहीं लिये। अपकाय, वनस्पतिकाय आदि की विराधना के कारण दाल, घी, आदि पदार्थ भी नहीं लिये । दहीं में अलता डालकर आतप में रखकर सूक्ष्म जंतु बताये, तब मंत्री परिवार मुनि भगवन्त के आचार से प्रभावित हए । मोदकों को निर्दोष जानकर बयालीस में से एक भी दोष न देखकर कहा" इस विषय में मैं कुछ नहीं कह सकता । वे ज्ञानी हैं उन्होंने ज्ञान से कोई कारण देखा होगा तभी नहीं लिये ।" मंत्री ने सोचा ‘अर्हत् धर्म की सूक्ष्मता आश्चर्यजनक है। मुनि भगवंत की नि:स्पृहता उत्तम कोटि की है । मैंने अनेक