________________
44
मूढ़ता से, जो अपराध किया है । कृपानिधि ! क्षमा करो । महापुरुषों का रोष चिरकाल नहीं रहता । और प्रणाम करनेवालें पर तो रहता ही नहीं । हम शरण में आये हैं । कृपा करो । बालक के हाथ पुनः सज्ज करो ।" मुनि भगवंत ने कहा 'मुझे रोष न आया और न आयगा । किन्तु शासन देवी ने इसको शिक्षा दी होगी । तब शासन देवी आकाश में प्रकट होकर बोली " इस पापी को पुनः सज्ज नहीं करूंगी ।" तब उन लोगों ने पूजा आदि से उसे संतुष्ट किया । शासनदेवी ने कहा यदि यह मुनि से प्रव्रजित हो तो मैं इसे सज्ज करूं?" इसके अलावा कोई उपाय न देखकर उन्होंने उस प्रस्ताव को स्वीकृत किया । देवी ने उसके हाथ नये कर दिये । दैवी शक्ति अपार होती है। सभी प्रमुदित हुए । मुनि पर देवी ने पुष्पवृष्टि की । पुरोहित पुत्र ने पश्चात्ताप करते हुए मुनि से क्षमायाचना की । मुनि भगवंत ने उसे धर्म का स्वरूप समझाकर प्रतिबोधित किया और उसके पितादि परिवार की अनुमति लेकर प्रव्रज्या दी । शिक्षा ग्रहण के लिए उसे स्थविर कल्पियों के पास भेजा । वे सभी मुनि को वंदनकर मुनि भगवंत की प्रशंसा करते हुए घर गये । राजा आदि अनेक लोगों ने भी मुनि भगवंत से प्रभावित होकर चारित्र ग्रहण किया । वहाँ से विहार करते हुए मुनि यहाँ पधारे हैं तप-ध्यान-योग से अवधिज्ञानी बने हैं । वे ही ये मुनि तेरे भाग्योदय से मासखमण के पारणे के लिए शुद्ध आहार की गवेषणा करते तेरे घर आये थे । ये साक्षात् कल्पवृक्ष, महामहिमावान् हैं, क्योंकि इनकी देवता भी सेवा करते हैं । ये समताभाव में रहते हैं । न तुष्ट होते हैं, न क्रोधित होते हैं । परंतु पूजा और निन्दा का फल यहाँ और परलोक में अवश्य मिलता हैं ।
1
इस प्रकार मुनि भगवंत की प्रशंसा अपने श्रावक मित्र के मुख से श्रवणकर, पश्चात्ताप और भय से विह्वल अपनी प्रियाओं