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________________ कुवलयमाला-कथा [85] एक पेड़ से बाँध दिया। इतना काम करके भूख-प्यास के मारे तीनों इधर उधर सर्वत्र घूमने लगे। किन्तु खाने योग्य फलों वाला कोई भी वृक्ष उन्हें कहीं न दिखाई दिया। इस प्रकार सारे द्वीप में इच्छानुसार भटकने वाले और सैकड़ों दुःखों से व्याकुल उन लोगों ने बड़ी कठिनाई से तीन कुडङ्ग ऐसे पाये, जो घर सरीखे बने हुए थे। तीनों मित्र एक-एक कुडङ्ग में ठहरे। उन कुडङ्गों में एक-एक ऊमर (गूलर) का झाड़ था। उसे देखकर उन्हें अत्यन्त प्रसन्नता हुई। वे आपस में एक दूसरे को कहने लगे-“ओहो! हमें जो चाहिए था, वह मिल गया। इन वृक्षों को देखते ही चित्त स्वस्थ हो गया।" अब तीनों कुडङ्गों में घुसकर गूलर के फलों को देखने लगे, परन्तु एक भी फल न दिखाई दिया। इससे फिर तीनों की आशा पर पानी फिर गया- उनके मन अत्यन्त दु:खी हो गये। कुछ दिन बीत जाने पर जैसे-तैसे गूलर वृक्ष फलों से लद गये। कौआ आदि पक्षियों के उपद्रव से तीनों उसकी रक्षा करने लगे। इधर समुद्र में कोई सांयात्रिक जहाज से व्यापार करने वाला जा रहा था। उस दयालु ने जहाज टूटने का चिह्न देखकर दो आदमियों को भेजा। वे दोनों आकर उस द्वीप में सर्वत्र आदमियों को खोजने लगे। इतने गूलर के फलों में जीवन की आशा लगाये हुए तीनों मित्र कुडङ्गों में नजर आये। उन्हें देखकर दोनों ने कहा-"हम लोगों को एक जहाज के व्यापारी ने तुम तीनों को ले आने के लिए भेजा है। अत्यन्त दुःख और शीत वाले इस द्वीप में तुम किस प्रकार रह सके हो?" यह बात सुनकर तीनों में से एक बोला-"इस द्वीप में दुःख ही क्या है? घर की तरह यहाँ कुडङ्ग है। यह गूलर का वृक्ष फल गया है, फिर भी इसी प्रकार फलेगा। मैं तो यहाँ बड़े मजे में हूँ। मैं तो किसी प्रकार जाने को राजी नहीं हूँ।" इसका यह रूखा उत्तर पाकर उन्होंने दूसरे से कहा"तुम मेरे साथ सामने किनारे पर चलो" वह बोला- "मैं गूलर का एक पका फल खाकर बाद में किसी दूसरे नाविक के साथ आऊँगा।" उसका भी उत्तर पाकर वे दोनों तीसरे आदमी के पास पहुँचे उन्होंने तीसरे से कहा-"भले आदमी यहाँ रह कर क्या करेगा? सामने किनारे (जहाज के पास) चल।" उसने कहा-"तुम आ गये, बहुत अच्छा हुआ"। इतना कहकर वह बड़े प्रेम से उनके साथ चल दिया और जहाज पर सवार हो गया। कुछ दिनों के बाद तृतीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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