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कुवलयमाला - कथा
पुण्डरीक महामुनि ने पाँच करोड़ मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया है । उसी पर्वत से नमि और विनमि नामक विद्याधर राजाओं ने दो करोड़ मुनियों के साथ परम पद पाया है। श्रीराम, भरत और बालखिल्य आदि दस करोड़ मुनियों के साथ और नारद, पाँचों पाण्डव तथा और-और अनेक मुनिराज वहीं से सर्व दुःखों का नाश करने वाले मोक्ष को प्राप्त हुए हैं । जिस स्थान से एक भी जीव मोक्ष प्राप्त करता है, वह संसार में उत्तम तीर्थ कहलाता है । तो जहाँ से करोड़ों मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया, उस शत्रुञ्जय के विषय में कहना ही क्या है? उस पर्वत के वृक्ष अपने सुन्दर फूलों के बहाने से दूसरे पर्वतों की हँसी उड़ाते हैं, क्योंकि उन्हें जिनेश्वर के चरण छूने को नहीं मिलते। वह पर्वत अपने स्फुरायमाण झरनों के कल-कल शब्द से कहता है" मनुष्यों ! मुझे छोड़कर दूसरे तीर्थों में क्यों भटकते फिरते हो?" जो व्यक्ति सब शङ्काओं का त्याग कर समस्त इच्छाओं से युक्त होकर इस तीर्थ की सेवा करता है, अपने-आप मोक्ष को पा लेता है।
इस प्रकार के परम पवित्र शत्रुञ्जय महातीर्थ की ओर जाते हुए मैंने अवधिज्ञान से तुझे अपने पिता का घातक जानकर सोचा- ' इसने एक अकार्य तो कर ही डाला है, परन्तु दूसरे अकार्य करने से पहले ही इसे प्रतिबोध करूँ, क्योंकि यह भव्य प्राणी है, केवल मोह के कारण इसका मन मूढ़ हो गया है, इसीसे इसने यह अकार्य कर डाला है। जो स्वयंभूरमण समुद्र को भी अपनी भुजाओं से लीलामात्र में पार कर सकते हैं, जो एक ही भुजा से पर्वत सहित सम्पूर्ण पृथ्वी को छाते की भाँति सहज ही ऊपर उठा सकते हैं और जो एक लाख योजन प्रमाण वाले-ऊँचे सुमेरु पर्वत को, उसके दण्ड की जगह स्थापन करने में समर्थ हैं, ऐसे तीन लोक में श्रेष्ठ तीर्थङ्कर भगवान् भी कर्म के अधीन होते हैं, तो बेचारे मोहदत्त की क्या बिसात है?' ऐसा विचार कर मैं नीचे उतरा और तुझे प्रतिबोध दिया है। मोहदत्त बोला- "भगवान् तो मुझे दीक्षा कैसे प्राप्त होगी ?"
मुनिराज - तू कौशाम्बी नगरी की दक्षिण दिशा में जा। वहाँ पहुँच कर पुरन्दर राजा के उद्यान में ठहरे हुए मुनियों में श्रेष्ठ श्री धर्मनन्दन आचार्य के पास तुझे जाना है। वे गच्छ के स्वामी हैं । तेरा हाल स्वयं जान कर तुझे वे दीक्षा देंगे।
द्वितीय प्रस्ताव
मोहदत्त की कथा