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कुवलयमाला-कथा दो टुकड़े निकाल कर एक से लड़के और दूसरे से लड़की को लपेटकर दोनों को वहाँ रखकर सुवर्णदेवी शरीर का मल त्याग करने के लिए विन्ध्य पर्वत की तलेटी के झरने के पास गयी। इतने में सद्यः प्रसूत तुरत की व्याही हुई बाघन अपने बच्चों के लिए भोजन की तलाश में घूमती-फिरती नये रुधिर की गन्ध के सहारे वहाँ आ पहुँची। उसने वस्त्र के टुकड़ों में लपेटे हुए दोनों बालकों को उठाया। चलते समय रास्ते में एक ओर बाँधी हुई लड़की बीच ही में खिसक कर गिर पड़ी। बाघन को इसका कुछ पता न लग पाया। होनहार बलवान् है। उसी समय पाटलीपुत्र के राजा जयवर्मा का दूत वहाँ अपनी स्त्री सहित वहाँ आ पहुँचा। उसने लड़की को देखकर उसे उठा ली और अपनी निस्सन्तान पत्नी को सौंप दी। दम्पती उस लड़की को लेकर पाटलीपुत्र आये। वहाँ उसका नाम वनदत्ता रखा गया।
इधर बाघन कुछ आगे चली कि इतने में किसी दूसरे काम के लिए आए हुए महाराज जयवर्म के पुत्र शबरशील ने उसे बाघ समझ बड़े से शस्त्र द्वारा मार डाला। शबरशील उसके पास आया तो क्या देखता है कि मृणाल के समान कोमल काया वाला, लाल कमल समान दोनों पैरों वाला, खिले हुए कमल के समान नेत्र वाला और पूर्णमासी के चन्द्रमा के समान सुन्दर मुख वाला एक बालक पड़ा हुआ है। उस बालक को पास के गाँव में ले जाकर प्रसन्न चित्त हो अपनी पत्नी को-'यह तेरा पुत्र है' कहकर सौंप दिया। ‘बड़ी दया की' कहकर स्त्री ने बालक को ले लिया। इसके अनन्तर शबरशील ने पुत्र-जन्म के वर्धापन का महोत्सव किया और बारहवें दिन उसका नाम 'व्याघ्रदत्त' रखा। उस समय गाँव भर में खबर फैल गयी। कुछ समय में शबरशील उस लड़के को लेकर पाटलीपुत्र में आया। वहाँ वह बालकों की आदत के अनुसार अन्यान्य राजपुत्रों के साथ क्रीड़ा करने लगा। उसका चित्त महामोह से मोहित हो गया था। अतएव लोगों ने उसका नाम मोहदत्त रख लिया। अनन्तर, मोहदत्त समस्त कलाओं, उम्र और गुणों से धीरे-धीरे बढ़ने लगा।
इस ओर सुवर्णदेवी शरीर को पवित्र करके आयी, तो बालकों को वहाँ न पाकर बेहोश हो गयी। फिर शीतल वायु उसे होश-हवास में लाया। होश में आकर वह बहुत देर तक विलाप करती रही। फिर स्वयं प्रतिबोध पाकर द्वितीय प्रस्ताव
मोहदत्त की कथा