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________________ कुवलयमाला-कथा [75] चलने के कारण थक गयी। सिंहों की गर्जना सुनकर प्राण सूखने लगे। बाघ को देखकर हृदय काँपने लगा। वह औंधे रास्ते चलती-चलती इस प्रकार विलाप करने लगी- 'हाय तात! मैं तुम्हें बहुत ही प्यारी थी, तो भी तुमने मेरी रक्षा न की। हे प्रियतम! तुम्हारे लिए क्षणमात्र में ही मैंने शील, कुल, यश, लाज, को सुखी जनों के वस्त्रों के छोर में लगे हए तिनके की तरह झाड़ के द्वारा घर से निकाले हुए कचरे की तरह सर्वथा त्याग कर दिया, तो भी मेरी उपेक्षा करते हो?' इस प्रकार विलाप करती हुई सुवर्णदेवी बेहोश होकर धरती पर गिर पड़ी। इसी समय चन्द्रमा अपनी किरणों को सिकोड़कर पश्चिम समुद्र में डूब गया, मानो उसे मरी हुई समझकर दुःखी हो गया हो, चन्द्रमा के डूबते ही गजेन्द्रों के समूह तथा विन्ध्याचल के शिखर के वृक्षों के समुदाय की नाई श्याम अन्धकार चारों ओर फैल गया। वह शीतल वायु से होश में आयी, मानो वायु ने उस पर दया कर दी हो। इसके अनन्तर उसी भयङ्कर वन में निराश्रय और अकेली सुवर्णदेवी ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया। पुत्र-जन्म का हर्ष तो दर किनार, उस भीषण अन्धकार में वह उसका मुँह भी न देख सकी। सुवर्णदेवी फिर विलाप करने लगी-'हे वत्स! पिता, माता, पति और सम्बन्धियों ने तुझे त्याग दिया है। अब तू ही एक मेरा आश्रय है, तू ही मेरी मति है, तू ही गति है क्योंकि बाल्यावस्था में स्त्रियों का रक्षण पिता करता है, युवावस्था में पति और बुढ़ापे में पुत्र रक्षण करता है। स्त्रियाँ कभी बिना नाथ (रक्षक) के नहीं रहतीं।' वह इस प्रकार विलाप कर रही थी कि सूर्य उदयाचल पर्वत पर आया, मानों उसके दुष्ट कष्ट को ही मिटाने आया हो, मानो वर्ण का विनाश करने वाले अन्धकार समूह का सत्तानाश करने के लिए क्रोधित हो गया हो, ऐसा सूर्य लाल सूर्य उदित हुआ। प्रातः काल हो गया। 'अब क्या करना चाहिए? वह यही विचार करने लगी। प्राणों का त्याग तो अनुचित है, ऐसा करने से ये दोनों बालक-बालिकायें भी मर जावेंगे। इसलिए इस समय तो बालक का पालन करना ही ठीक है।' यह सोचकर वह किसी गाँव के पास आ पहुँची। उसने राजकुमार तोसल के नाम वाली अंगूठी बालक के गले में और अपने नाम की बालिका के गले में बाँधी। अपने ओढ़ने के कपड़े में से मोहदत्त की कथा द्वितीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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