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कुवलयमाला-कथा फडकने लगे। उसने आज्ञा दी-"मन्त्री! मैं अन्यायी पुत्र को भी क्षमा नहीं कर सकता। उसे शीघ्र ही सजा दो। मन्त्री ने 'हुजूर की आज्ञा प्रमाण है' कहकर किसी दूसरे बहाने राजकुमार को ढूँढ निकाला। वह उसे श्मशान भूमि में ले गया। मन्त्री क्या करने योग्य है, और क्या नहीं, यह बात भली-भाँति जानता था। उसने कुमार से कहा-"कुमार! तुम्हारे दुराचार से महाराज तुम पर अत्यन्त क्रुद्ध हो गये हैं। तुम्हें मार डालने के लिए मुझे आज्ञा दी है। परन्तु तुम स्वामी के पुत्र हो, अतः स्वामी ही हो। तुम्हें किस प्रकार मारूँ? मैं सदा तुम्हारे वंश का सेवक हूँ। अतएव तुम इस प्रकार भाग जाओ कि तुम्हारी खबर भी यहाँ किसी को न सुनाई पड़े। कहीं भी 'तोसल' नाम से अपना परिचय न देना।
इतना कहकर मन्त्री ने कुमार को चले जाने के लिए कहा। कुमार उसी समय वहाँ से चम्पत हुआ और कितने ही शहरों को पार करता हुआ अन्त में पाटलीपुत्र नगर में पहुँचा। उस समय जयवर्मा नामक राजा वहाँ के राज्य का पालन करता था। कुमार उसी के पास जाकर सेवा करने लगा।
इधर बाला सुवर्णदेवी का दुराचार जान कुटुम्बी तथा दूसरे लोग उसकी निन्दा करने लगे। एक तो निन्दा से, दूसरे कुमार के विरह से उद्विग्न और जनित दुःख के भार से दुःखित बाला विचार करने लगी-'मुझे त्यागकर चले गये राजकुमार कहाँ होंगे?' सुवर्ण इस प्रकार विचार कर ही रही थी, इतने में एक सखी ने कहा-"तेरे अपराध के कारण, राजा की आज्ञा से मन्त्री ने कुमार को मार डाला है।" यह सुनकर सुवर्णदेवी ने गर्भिणी होने के कारण प्राण त्याग तो नहीं किये,पर किसी बहाने आधी रात के समय घर से बाहर निकल गयी। भवितव्यता की बलिहारी, पाटलीपुत्र की ओर कोई संघ जा रहा था, उसी के साथ सुन्दर दाँत वाली सुवर्णदेवी भी चल दी। गर्भ की वेदना से पीडित होती हुई बाला धीरे-धीरे चलती थी। वह उतावली से पैर बढ़ाने में असमर्थ थी। इस कारण वह संघ (सार्थ) से पीछे रह गयी- उससे जुदी हो गयी। क्रम से चलती-चलती वह ताल, हिंताल, तमाल, कदम्ब, जम्बु और जम्बीर वगैरह हजारों वृक्षों के कारण घने वन में जा पहुँची। दिशाओं के विभाग से अजान होने के कारण वन से बाहर निकलने का मार्ग न सूझ पड़ा। प्यास के मारे उस का चित्त चञ्चल हो उठा। भूख से दुःखी हो गयी। मुँह श्याम हो गया। रास्ता द्वितीय प्रस्ताव
मोहदत्त की कथा