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कुवलयमाला-कथा कर लिया था। फिर यह सोचकर कि आज अन्तिम बार प्राणियों को भलीभाँति देख लूँ, झरोखे में बैठी थी। भवितव्य के योग से उस समय तुम्हीं मेरे दृष्टिगोचर हुए। तुम्हें देखते ही मैं अनुरक्त हो गयी। तुमने अपनी छाती को छूकर अङ्गली ऊँची उठाई। यह देखकर मैंने सोचा- 'राजपुत्र ने हृदय को स्पर्श करके यह इशारा किया है कि मेरा मन तुझे अत्यन्त चाहता है।' अङ्गली ऊँची करने पर मैंने अपना हाथ तलवार सरीखा बताकर कहा-यदि तुम तलवार के बल पर आओगे तो संगम होगा। नहीं, तो नहीं। राजपुत्र! तभी से मेरा मन संगम की आशा में उलझा हुआ है। परन्तु आज तक तुम्हारा कुछ भी हाल मालूम न हुआ। इससे मैं ने काँपते हुए आज तो प्राण त्याग करने का निश्चय कर लिया था। इतने में ही तुम आगये। तुम्हारे मिलन से इस समय मेरी चेतना नष्ट सी हो गयी है। गुरुजनों का विनय विनष्ट हो गया है। विवेक रूपी रत्न का अपहरण हो गया है। धर्म का उपदेश बिसर गया है। लेकिन राजपुत्र! यदि मैं तुम्हारे साथ संगम करूँगी तो मैं अपने कुल रूपी मन्दिर में एक दुःशीला कहलाऊँगी। स्वजन मेरा तिरस्कार करेंगे। लोग मुझे कलङ्क लगावेंगे। अब, जो लोकापवाद की उपेक्षा करूँ तो ही मेरा मनोरथ सफल हो सकता है, नहीं तो मरण ही शरण है।" इतना कहकर सुन्दर दाँत वाली बाला ने कुमार का गाढ़ आलिङ्गन किया, जैसे रात्रि चन्द्रमा का आलिङ्गन करती है। उसने अपनी जवानी प्रीति से सफल की! इसके अनन्तर राजकुमार ने रात भर वहीं रह कर, विरह के समय विनोद करने के लिए अपने नाम की एक मुद्रिका दी।
संध्या के राग से पूर्व दिशा शोभित होने लगी। उसी समय राजकुमार जैसे घुसा था, उसी प्रकार बाहर निकल आया। इसी भाँति उस बाला के पास जातेजाते आठ महीने बीत गये। इतने में भवितव्य के अनुसार वह गर्भवती हो गयी, उसके गर्भ रह गया। यह समाचार उसकी सखियों ने उसकी माता रत्नरेखा से कहा रत्नरेखा ने यही समाचार नन्दन श्रेष्ठी से कह दिया। सुनते ही सेठजी को क्रोध चढ़ आया। उसने यह समाचार कौशल महाराज से कह सुनाया। राजा ने उत्तर दिया- “सेठ जी! आप अपने घर जाइये, मैं अभी इसकी तहकीकात करता हूँ।"
राजा की आज्ञा पाकर मन्त्री ने चारों ओर तहकीकात की। तोसलकुमार हाथ न लगा। मन्त्री ने सारी बात राजा से निवेदन की। सुनते ही राजा के होंठ
मोहदत्त की कथा
द्वितीय प्रस्ताव