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कुवलयमाला-कथा भास होने लगा, जैसे आज रोमाञ्च रूपी कंचुक पहन लिया हो। उसने सोचा'आज मेरा शरीर रोमाञ्चित हो उठा है ये हाथ कमलिनी के पत्ते जैसे कोमल लगते हैं। मालूम होता है मेरे अन्त:करण के सर्वस्व का चोर राजकुमार आया है।' ऐसा विचार कर वह बोली-" हे सौभाग्य की निधि! मुझे छोड दो।" बाला की यह बात सुनकर कुमार ने हँसते-हँसते हाथ ढीले कर दिये। कुमार को अपने घर आया देख बाला विनय पूर्वक खड़ी हुई और उन्हें बैठने को आसन दिया। कुमार ने आसन पर बैठ कर कहा-"सुन्दरी ! मैं तुम्हारा संगमन चाहता हूँ।" बाला - "आप कहते हैं सो ठीक है। किन्तु उच्चकुल की स्त्रियों के लिए शील की रक्षा करना ही हितकर है।" बाला की यह बात सुनकर कुमार-"जो तुम ऐसी शीलवती हो तो मैं जाता हूँ।" इतना कह खड्गरत्न और ढाल उठाकर एकदम खड़ा हो गया। बाला ने कुमार के कपड़े का छोर पकड़कर कहा-“हे भद्र! चोर की तरह मेरा हृदय चुराकर अब क्यों जाते हो? मैं तुम्हें बाहुलता के पाश में बाँधकर कैद करूँगी" बाला का कथन सुन राजकुमार खड़ा रह गया। वह फिर बोली-“हे राजपुत्र! जो यथार्थ बात है सो पहले सुनिये। फिर जो योग्य अँचे सो करना। इसी कोशला नगरी में नन्दन नाम के एक सेठ रहते हैं। उनके रत्नरेखा नाम की पत्नी है। उसकी पूख से मैं उत्पन्न हुई हूँ। मेरा नाम सुवर्णदेवी है। मैं अपने माँ-बाप की अत्यन्त प्यारी पुत्री हूँ। मेरे माँ बाप ने मुझे विष्णुदत्त के पुत्र हरिदत्त को पाणिग्रहण के लिये दी है। हरिदत्त मुझे ब्याह कर तुरन्त जहाज में चढ़कर व्यापार के लिए लङ्कापुरी चला गया है। उसे गये आज बारह वर्ष से अधिक बीत चुके हैं। वह जीवित है या मर गया, इसका भी पता नहीं। कामदेव रूपी बड़े-बड़े आवर्त (भँवर) और गों से दुस्तर, विषय रूपी मत्स्य और कछुवों से भयङ्कर तथा अत्यन्त गहन, इस यौवन महासागरका निर्दोष उल्लङ्घन करते-करते मेरे इतने दिन बीत गये हैं। विषयों को जीतना कठिन है। इन्द्रियाँ सब चञ्चल हैं। अतः एक दिन मेरे मन में इस प्रकार के संकल्प विकल्पों की लहरें उठने लगी- 'अहो! जरा, मरण, शोक और क्लेशों से भरे हुए इस संसार में प्रिय के संयोग के सिवाय और कुछ सुन्दर नहीं। मेरा जन्म बकरी के गले के थन के समान, अरण्य में खिले हुए मालती पुष्प के समान और बहरे के कान में बातें करने के समान अकारथ हो चला जा रहा है। ऐसा जीना वृथा है।' ऐसा विचार कर मैंने मरने का निश्चय
द्वितीय प्रस्ताव
मोहदत्त की कथा