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कुवलयमाला-कथा थे। उस नगरी में सदापरमदार सदारागपर और सदाहारसार वैभवशाली लोगों के समूह मुनिगण रहते थे। उस नगरी की नैर्ऋत्य दिशा में धान्य के ढेरों से मनोहर दिखाई देने वाला उच्छल नामक गाँव है। उस गाँव में उत्तम कुल में उत्पन्न एक सार्थवाह पुत्र धनदेव रहता था। किसी दूसरे सार्थवाह के लड़के के साथ क्रीड़ा करते-करते उसका कुछ समय व्यतीत हुआ। धनदेव स्वभाव से ही लोभी था। दूसरों को ठगने में चतुर, झूठा और दूसरे के धन पर हाथ साफ करने वाला था। उसके ऐसे कृत्य देखकर दूसरे सार्थवाहों के पुत्रों ने उसका धनदेव नाम बदलकर लोभदेव नाम रख छोड़ा था। क्रमशः बढ़ते-बढ़ते लोभदेव जवान हुआ। उसका मन अत्यन्त लोभ के वशीभूत हो गया।
एक बार उसका मन धन कमाने के लिए अत्यन्त उत्साहित हआ। उसने गुरुजनों की आज्ञा ली। बड़े-बड़े घोड़े तैयार किये, सवारियाँ सजाईं और कलेवा बाँधकर मित्रों की आज्ञा प्राप्त की। जब सूर्य की दृष्टि वाला चर लग्न आया तब तिथि और नक्षत्र से शुभ चन्द्रमा के बल वाले मुहूर्त में उसने स्नान किया तथा देव- पूजा की। फिर जिस तरफ का नाक का स्वर चलता था उसी तरफ का पैर पहले आगे बढ़ा कर रवाना हुआ। उसके कुटुम्बी पहुँचाने आये। लोभदेव आनन्द के साथ दक्षिण की ओर चला। उसका पिता बोला"बेटा! तू सब शास्त्र पढ़ा है। तुझे उपदेश देना माणिक्य पर घन का प्रहार करना, सरस्वती को पढ़ाना और मोती को साफ करना है-व्यर्थ है। तो भी ममता के कारण मेरा मन तुझ में मुग्ध हो रहा है। इसलिए कुछ कहता हूँ। सुनो बेटा! परदेश बहुत दूर है। रास्ते में (बीच में) बहुतेरे विषम मार्ग हैं। लोग बड़े मायाचारी होते हैं। स्त्रियाँ दूसरों को ठगने के लिए तैयार रहती हैं। दुर्जन बहुत और सज्जन थोड़े होते हैं। माल की रक्षा करना कठिन है। जवानी में बड़ी जोखिम रहती है। कार्य की गति विचित्र है। इससे तुझे कहीं सर्वथा पण्डित, कही मूर्ख, कहीं दयालु, कहीं निर्दय, किसी समय शूरवीर, कभी कायर बनकर काम निकालना होगा।"
८. सदा श्रेष्ठ स्त्री वाले लोग और सदा अपरमदारा वाले मुनि। ९. सदा राग में तत्पर लोग, सदा अराग-वीतराग में तत्पर मुनि। १०. सदा हार वाले लोग और सत्-अच्छे निर्दोष, आहार वाले मुनि ।
द्वितीय प्रस्ताव
लोभदेव की कथा