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कुवलयमाला-कथा
[57] है, उस पाप का नाश करने के लिए मुझ पर अनुग्रह करके समस्त सिद्धियों का निवास स्थान रूप दीक्षा दीजिये।" भगवान् धर्मनन्दन सूरि ने यह सुनकर ज्ञान के अतिशय से उसकी कषायों को शान्त हुआ समझकर श्रीतीर्थङ्करों द्वारा प्रतिपादित विधि के अनुसार दीक्षा दे दी।
।। इति मायादित्य-कथा।।
माया पर मायादित्य की कथा
द्वितीय प्रस्ताव