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________________ [46] कुवलयमाला-कथा से-क्रीड़ा मात्र में नीचे पटक देती है। जान पड़ता है कि स्त्रियों के पास कोई लौकिक हथियार है क्योंकि ये उसने प्राणियों के बाह्य और आभ्यन्तर दोनोंप्राणों को हर लेती हैं। बहुत देर तक इस प्रकार विचार करता हुआ मानभट वासगृह से बाहर निकला। माँ ने पूछा-"बेटा! कह तो सही, क्या मामला है?" लेकिन मानभट माँ को उत्तर दिये बिना ही घर से बाहर हो गया। मानभट के चले जाने पर गौराङ्गी ने सोचा- 'ओहो, मेरा हृदय वज्र की तरह कठोर है, स्वामी स्वयं पैरों में पड़े तो भी मैं राजी न हुई? मैं ने यह ठीक नहीं किया। बार -बार पैरों में पड़कर भी जब मुझे राजी होते न देखा तो खेद के कारण मेरे प्राणनाथ न जाने कहाँ चले गये हैं? मैं भी उनके पीछे पीछे जाऊँ?' ऐसा सोचकर गौराङ्गी भी वासगृह से बाहर निकली। उसकी सास ने पूछा-"बेटी! तू कहाँ चली?"। गौराङ्गी "तुम्हारे पुत्र कहीं चले गये हैं" कहती हुई उतावली से दौड़ी। एकदम उसके पीछे-पीछे उसकी सास भी दौड़ी। तब मानभट के पिता वीरभट ने सोचा-'सारा कुटुम्ब आज कहाँ भागा जा रहा है?' ऐसा विचारकर वीरभट भी उसी रास्ते रवाना हुए। आगे मानभट को उसकी स्त्री ने घोर अन्धकार से आच्छादित कुँए के रास्ते पर जाते हुए जैसे-तैसे देख पाया। मानभट चलता-चलता घने वृक्षों की हजारों शाखाओं से जहाँ घोर अन्धकार हो रहा था, ऐसे एक कुँए के किनारे आया। वहाँ से पीछे आती हुई अपनी स्त्री को देखा। उसे आती देखकर उसने उसकी परीक्षा करने की ठानी। उसने कुंए में एक बड़ी भारी शिला पटक दी। शिला के गिरने से जो आवाज हुई, उसे सुनकर पति को कुंए में गिरा समझ, अत्यन्त दुःखित होकर गौराङ्गी तत्काल ही कुंए में गिर पड़ी। उसकी सास ने भी इस दुःख से दुःखित होकर अपने को कुंए में भेंट किया और उसके पीछे आने वाले ससुर ने भी उसी का अनुकरण किया- वह भी उसी में गिर पड़ा। तीनों को मरा समझ मानभट ने मन में विचार किया- 'अब मुझे क्या करना चाहिए? मैं भी इस दुःख से अपने को कुंए में डालूँ या नहीं?' इस प्रकार विचारकर हे पुरन्दरदत्त राजन्! वह मानभट उस समय होने वाली उनकी निवापाञ्जलि। (मरने के बाद होने वाली एक) क्रिया करके, बिल्कुल विरक्त हो देश-विदेशों में भ्रमण करने लगा। जिसने जैसा बताया, उसी के अनुसार भृगुपात, गङ्गास्नान वगैरह आचरण करने लगा। अन्त में माता-पिता और पत्नी द्वितीय प्रस्ताव मान पर मानभट की कथा
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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