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कुवलयमाला-कथा दाक्षिण्य शून्य है? कैसा बेहया और प्रेमरहित है? उसने उल्टा नाम लेकर मुझे बड़ा दुःख दिया है। जब मेरी सौभाग्य लक्ष्मी का ही निरादर हो गया तो मेरा जीना ही उचित नहीं।' ऐसा विचार करती हुई गौराङ्गी स्त्रियों की टोली में से बाहर निकलने का उपाय खोजती, पर आँख बचाकर निकलने का मौका हाथ न आया। इतने में सूर्य मानो गौराङ्गी का दु:ख न देख सकने के कारण ही अन्य द्वीप में चला गया। भौंरे कमलों को छोड़कर कुमुदों के समूह में गये, क्योंकि मधुप की एक जगह प्रीति नहीं होती। दिन का अन्त होने से विश्व में प्रकाश करने वाला खग = सूर्य अस्त हुआ। उसके सौहार्द से मानो दुःखी हो गये हों इस प्रकार खग=पक्षी आक्रोश करने लगे। अन्धकार के समूह से सारा विश्व इस प्रकार व्याप्त हो गया कि लोग अपना हाथ भी न देख सकते थे। क्षण-भर में समस्त दिशाएँ अन्धकार से ग्रसित हो गई। बिना स्वामी के कौन ऐसा पुरुष है, जो पीड़ा नहीं पाता। अन्धकार का राज्य होने से समस्त भूतल अन्धकारमय हो गया। सो ठीक है- यथा राजा तथा प्रजा जैसा राजा वैसी प्रजा। अन्धकार के द्वारा एकमेक किये हुए जगत् में, उस समय जलथल, ऊँचा-नीचा, सम-विषम कुछ भी न दिखाई देता था। ऐसे समय में गौराङ्गी स्त्री समूह में से निकल कर मरने का उपाय सोचती-विचारती घर आई। उसकी सास ने उससे पूछा-"बेटी! तेरा पति कहाँ है?" वह बोली-"लो यह है, मेरे पीछे पीछे तो लगा फिरता है" इस प्रकार बड़बड़ाती हुई गौराङ्गी अपने शयनगृह में घुसी। पश्चात् अत्यन्त महान् और दुस्सह उल्टा नाम लेने रूपी वज्र से कुचली हुई वह बोली- “हे नीति के पालन करने वाले लोकपालों! तुम सुनो। मैंने अपने चित्त में अपने पति के सिवाय किसी दूसरे के नाम का कदापि विचार नहीं किया। तो भी उनने मेरी प्राणप्यारी सहेलियों के बीच जो मेरा अपमान किया है वह अच्छा नहीं किया।" ऐसा कहकर अत्यन्त कुपित उस स्त्री ने अपने को तिनके की तरह त्याग करने के लिए गले में फाँसी लगा ली।
इधर उद्यान में मानभट ने स्त्रियों में अपनी पत्नी को न देखा, तो उसे कुछ शङ्का हुई। वह तुरन्त ही घर आया। उसने अपनी माता से पूछा "तुम्हारी बहू घर आई है या नहीं?" माँ ने उत्तर दिया कि यहाँ आकर सीधी वह शयनगृह में चली गई है। मानभट उसी समय वासगृह में आया और फौरन द्वितीय प्रस्ताव
मान पर मानभट की कथा