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कुवलयमाला-कथा
[43] कर दिया। मानभट भी बहुत से प्रहारों से पीडित हो गया। उसका पराक्रम मन्द पड़ गया। वह अपने आदमियों को लेकर जिस रास्ते पिता गया था, उसी से चला। रास्ते में वह उनसे मिल गया। इसके अनन्तर अनुक्रम से चलते-चलते नर्मदा नदी के किनारे आकर किसी गाँव में गुप्त रूप से रहे। वहाँ रहते-रहते कुछ दिनों में मानभट के घाव भर गये और वह चंगा हो गया। उन्होंने कुछ समय वहीं बिताया।
एक बार वहाँ वनभूमि में वसन्त ऋतु की लक्ष्मी शोभा का अवतार हुआ। उसके संसर्ग से सब वृक्ष नवीन-नवीन कोपलों से शोभित हुए। अशोक वृक्ष वियोगिनी स्त्रियों को दुखी करने लगा, मानो उनके पैर के तलुओं के आघात की याद करके बदला ही ले रहा हो। कामदेव भी वसन्त के संसर्ग से वियोगी पुरुषों को पीडित करने लगा, क्योंकि कामदेव की सेना फूलों की लक्ष्मी से बहुत बढ़-चढ़ गयी थी। केशर वृक्ष केशर की लक्ष्मी से विरहिणी रमणियों को पीड़ा पहुँचाने लगा, मानो मद्य के कुल्ले डालने से वह रुष्ट हो गया हों। पत्तों से समृद्ध पलाश के वृक्ष, अपने शत्रु वियोगिनियों के प्राण लेने के लिए ऐसा शोभित होने लगा मानो पलाश राक्षस ही है। आसापाला वृक्ष की डालियाँ हिल डुल कर ऐसी शोभित होने लगीं जैसे वसन्तऋतु की उतरौनी कर रही हो। ऐसे वसन्त के मौके पर मानभट गाँव के अन्यान्य युवकों के साथ झूला झूलने गया। वहाँ गाँव के लोगों ने कहा-" जिसे जो प्यारा हो, वह उसका नाम लेवे" यह बात सब ने स्वीकार कर ली। इसके अनन्तर अपनीअपनी प्रियाओं के पास तरुण पुरुष गीत गाने लगे। किसी तरुण ने अपनी गौराङ्गी नामकी स्त्री का नाम लिया। इसी तरह किसी ने श्यामाङ्गी, किसी ने तन्वङ्गी किसी ने नीलोत्पलाक्षी, इस प्रकार अपनी-अपनी स्त्रियों के नाम बताए। बाद में मानभट की बारी आई। उसने हिंडोले पर चढ़कर यद्यपि उसकी स्त्री गौराङ्गी थी, तो भी श्यामाङ्गी नाम लिया। श्यामा का नाम सुनकर उसकी स्त्री गौराङ्गी अत्यन्त कुपित हुई। तब दूसरी स्त्रियों ने दिल्लगी उड़ाई कि-'ए सखी! तुम्हारा रूप और सुहाग रचना चोखी नहीं है। इससे तुम्हारे पति किसी दूसरी श्यामाङ्गी नाम की प्रिया का नाम लेते हैं।" यह सुनकर सौभाग्यवती गौराङ्गी के दिल में कील सी चुभ गई। वह सोचने लगी-'ओहो! मेरे पति ने मेरी सहेलियों के सामने भी मेरी आबरू न रक्खी। अहो!! वह कैसा
मान पर मानभट की कथा
द्वितीय प्रस्ताव