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कुवलयमाला-कथा
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दौड़ने को हुआ, त्यों ही तलवार की नोंक दर्वाजे से भिड़गई । उससे जो आवाज हुई उसे सुनकर चण्डसोम की स्त्री की नींद टूट गई। वह एक दम आकर बोली- ए पापी ! यह क्या कर डाला? अपने छोटे भाई और बहिन को ही मार डाला ? " यह सुनकर चण्डसोम ने संभ्रम से देखा, तो भाई-बहिन को मरा पाया। इससे उसे बहुत पश्चात्ताप हुआ । उसने सोचा 'अरे रे, क्रोध के आवेश में मैंने तो बहुत बुरा कार्य कर डाला है' इत्यादि विलाप करता हुआ होश हवास भुला आँखें मींचकर धरती पर लोटने लगा । नन्दिनी भी देवर और ननद का नाम ले लेकर शोक रूपी शल्य से अत्यन्त पीड़ित होती हुई रोने लगी। थोड़ी देर में चण्डसोम होश में आकर - 'हा, गुणगण से सुन्दर सदाचारी बन्धु! हा बहिन श्रीसोमा ! आज तुम्हारे बिना आधारवाला जगत् मेरे लिए निराधार हो गया' घंटों तक इस प्रकार विलाप करने लगा । इतने में कुकर्मी द्विज का मुँह देखने लायक नहीं हैं ऐसे विचार से मानो लज्जित होकर चन्द्रमा अस्ताचल पर्वत पर उतरने को तैयार हुआ । उसका विलाप सुनकर स्त्रीस्वभाव के अनुसार कोमल कलेजे की रात्रि ताराओं के खिलने के बहाने से मानो अश्रुपात करती थी। इसके बाद मानो क्रोध से लाल हुआ, अन्धकार रूपी दुश्मन का नाश करता हुआ, प्रचण्ड करों (किरणों और टैक्सों) का विस्तार करता हुआ सूर्य राजा की तरह उदित हुआ । उस समय गाँव के लोगों ने चण्डसोम को समझाया - बुझाया कि इस प्रकार विलाप मत करो, तो भी वह 'हा बान्धव ! हा भगिनी ! 'कहता - कहता ही श्मशान में गया । वहाँ अग्नि से धधकती हुई चिता बनाकर चण्डसोम उसमें प्रवेश करना ही चाहता था कि इतने में गाँव के लोग - ' अरे ! इस ब्राह्मण को रोको, रोको' कहकर चिल्लाने लगे। बलवान् आदमियों ने उसे पकड़ रक्खा । पश्चात् ब्राह्मणों ने उससे कहा- " तू अपने प्राण क्यों वृथा खोता है? प्रायश्चित्त ले ले " । चण्डसोम बोला- " अच्छा तो मुझे प्रायश्चित्त दीजिये ।" चण्डसोम की स्वीकारता जानकर कोई कुछ कहने लगा, कोई कुछ। उनमें से एक बोला- “ उसने बिना कामना के पाप किया है, इसी से वह शुद्ध है । "
दूसरा - हत्यारे की हत्या करने से पाप नहीं लगता।
तीसरा
इस पाप में क्रोध ही कुसूरवार है" ।
द्वितीय प्रस्ताव
क्रोध पर चण्डसोम की कथा