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कुवलयमाला-कथा
[37] दे।" इस प्रकार उसकी बातचीत को चण्डसोम ने सुन लिया। इतने में ही वह युवती कहने लगी-'मैं जानती हूँ कि तुम चतुर हो, दाक्षिण्यशिरोमणि हो, दातार हो, विलासी हो, मिष्टभाषी हो, कृतज्ञ हो, परन्तु मेरा पति स्वभाव से ही चण्ड है।" युवति की बात सुनकर चण्डसोम को चण्ड शब्द सुनने से सन्देह हो गया। उसने सोचा- 'बेशक, यह दुराचारिणी मेरी स्त्री ही है। मुझे यहाँ आया जान सङ्केत कर रक्खे हुए पर के साथ सलाह कर रही है। इसे यह खबर ही नहीं कि मैं यहीं हूँ।' इतने में वह युवक बोला- "भले ही तुम्हारा पति चण्ड हो या सोम हो, यमराज हो या इन्द्र हो, पर आज तो मेरे साथ संग करना ही पड़ेगा।" युवती बोली- "यदि तुम्हारा यही निश्चय है तो मेरा पति यहीं कहीं बैठा-बैठा नाटक देख रहा है, इतने में मैं अपने घर चलती हूँ, तुम भी मेरा पीछा करके चले आना।" इतना कहकर वह युवति रङ्गभूमि से बाहर निकलकर घर चली गई। चण्डसोम ने सोचा 'ओहो! यही दुष्ट प्रकृति वाली मेरी स्त्री है क्योंकि उसने साफ ही कहा है कि मेरा पति चण्ड है।' चण्डसोम इस प्रकार विचार कर ही रहा था कि नटी ने गाया
प्रीति-पात्र यदि हो स्वजन, करता रमण विरान। ईर्षालू यह जानकर, लेवे तुरत हिं जान।।
नटी का यह गान सुनकर ईर्षालु चण्डसोम के होठ फड़कने उठे। उसने विचार किया- 'वह दुराचारी और वह दुराचारिणी कहाँ गये? इसी वख्त उसका सिर धड़ से जुदा करता हूँ।' यह विचार कर वह तत्काल ही वहाँ से उठ खड़ा हुआ। क्रोध के मारे उसकी छाती घड़कने लगी। वह अपने घर में घुस गाढ़ अन्धकार से आच्छादित घर के एक कोने में, दरवाजे के पीछे तलवार सम्भालकर खड़ा हो गया। इतने में नाटक समाप्त हो गया। उसका छोटा भाई और बहिन घर आये। चण्डसोम ने घर के दर्वाजे में उन्हें घुसते देखा। क्रोध रूपी अन्धकार से जिसके विवेक चक्षु नष्ट हो गये हैं, ऐसे उस चण्डसोम ने परलोक का विचार छोड़कर, लोकापवाद की परवाह न कर, तथा नीति को ताख में रखकर फौरन ही भाई और बहिन की हत्या कर डाली। वे दोनों धरती पर जा गिरे। 'यह है मेरा अप्रिय करने वाली प्रिया और यह दुराचारी पुरुष। इनके सिर को मैं अभी काटता हूँ।' यह सोचकर ज्यों ही वह तलवार खींचकर
क्रोध पर चण्डसोम की कथा
द्वितीय प्रस्ताव