SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [36] कुवलयमाला-कथा अपने पास आए हुए राजहंसों का स्वागत करने लगे। भौंरे हाथियों के गण्डस्थल को छोड़-छोड़ कर सप्तच्छद वृक्षों में क्रीडा करने लगे, क्योंकि मलिन प्राणी एक स्थान पर नहीं ठहरते। जलाशय अपनी तरल तरङ्गों रूपी हाथों से शरद् ऋतु की लक्ष्मी को प्रीतिपूर्वक अभिवादन करने लगे। अभागे के धन की नाई नदियों के पानी का प्रवाह क्षीण होने लगा। आर्य पुरुषों के कार्य की तरह धान्य की वृद्धि होने लगी। एक दिन उस गाँव में, घूमती-फिरती नट लोगों की टोली आयी। उसने गाँव के सब लोगों से नाटक देखने की प्रार्थना की। रात्रि का पहला पहर व्यतीत हुआ, लोगों का कोलाहल बन्द हुआ। नटों ने मृदङ्ग बजाना प्रारम्भ किया। मृदङ्ग की आवाज सुनकर गाँव के लोगों की भीड़ जमा होने लगी। उस समय चण्डसोम की इच्छा भी वहाँ जाने की हुई। पर अपनी स्त्री की रक्षा किस प्रकार करनी चाहिए? वह यही विचारने लगा। उसने सोचा'यदि मैं नाटक देखने जाऊँ, तो स्त्री की चौकसी किस प्रकार हो? यदि स्त्री की चौकसी करूँ तो नाटक किस प्रकार देखने को मिले? यह तो वही हुआ कि एक तरफ नदी दूसरी तरफ बाघ- इधर कुँआ उधर खाई। अनेक संकल्प विकल्पों से मेरा चित्त व्याकुल हो गया। मैं क्या करूँ? अच्छा, स्त्री को साथ ले जाऊँ, तो ठीक होगा? नहीं नहीं, यह भी ठीक नहीं। नाटक में सैकड़ों जवान पुरुष आये होंगे और मेरा छोटा भाई भी वहाँ गया ही होगा। जो होना होगा, होगा। इसे अपनी बहिन श्रीसोमा को सौंप जाता हूँ।' इस प्रकार विचार करके चण्डसोम स्त्री को अपनी बहिन के पास छोड़कर हाथ में तलवार ले नाटक देखने चल दिया। उसके चले जाने पर बहिन ने बार-बार कहा-“हे नन्दिनी! चल हम भी नाटक देखने चलें।" नन्दिनी बोली- “हे श्रीसोमा! क्या तुम अपने भाई की चेष्टा नहीं जानती, जो ऐसा कह रही हो। मैं- अपनी जिन्दगी से अभी उकताई नहीं गई हूँ। तुम्हारी जैसी इच्छा हो, करो। मैं नहीं आती।" यह उत्तर सुन श्रीसोमा नाटक देखने चली गई, और नन्दिनी घर रही। ___ रङ्गभूमि में चण्डसोम नाटक देख रहा था। उसके पीछे बैठे हुए कोई स्त्री पुरुष आपस में बात करने लगे। उनमें से एक जवान आदमी बोला "हे सुन्दरी ! हृदय में और स्वप्न में मुझे तू ही तू दिखाई देती है। सैंकड़ों मनोरथ करके आज तुझे आँखों देख कर तेरे विरहानल की ज्वाला के समुदाय से मेरा शरीर भस्म हुआ जाता है, उसे अब तू अपने संयोगरूपी अमृतरस से सींच द्वितीय प्रस्ताव क्रोध पर चण्डसोम की कथा
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy