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________________ [24] कुवलयमाला-कथा करके पुत्र का मस्तक चूमा और प्रेम से कहा-"बेटा! देव, गुरु और सती माताओं (कुल में वृद्धाओं) के प्रताप से ठीक पिता सरीखे होओ।" रानी इतना ही कह पाई थी कि उसी समय नौकरानी ने प्रणाम करके कहा- "देवी! आज महाराज स्वयं अश्वक्रीड़ा करने जाने वाले हैं, इसलिए कुमार को भेज दीजिये।" रानी की आज्ञा पाकर कुमार राजा के पास आया। राजा ने अश्वपाल से कहा"अश्वपाल! महेन्द्रकुमार के लिए गरुड़वाहन नाम का घोड़ा लाओ, दूसरे राजपुत्रों के लिए योग्यता के अनुसार ऊँचे घोड़े दो, मुझे पवनावर्त (वायुवेगी) घोड़ा दो और रत्नों का पल तथा सुनहरी चौकड़ी वाला उदधिकल्लोल नाम का घोड़ा कुवलयचन्द्र कुमार के लिए लाओ।" राजा के आदेश से अश्वपाल ने सब को घोड़े दिये और कुवलयचन्द्र का घोड़ा लाकर उसके पास खड़ा रक्खा। उस घोड़े का मन हमेशा हवा की तरह चलने में ही रहता था। वह क्षणभर में कामदेव की तरह दूर देशान्तर में पहुँच जाता था। स्त्रियों के स्वभाव की भाँति वह चपल था और वेश्या के प्रेम के समान चारों पैरों की स्थिरता से रहित था- चार पैरों से खड़ा न रहता था। चौक में खड़े हए उस घोड़े को देख कर राजा ने कुमार से पूछा-"कुमार! क्या घोड़े की भी कुछ परीक्षा जानते हो?" ___ कुमार ने निवेदन किया- "गुरु के चरण कमलों की कृपा से थोड़ा बहुत जानता हूँ।" राजा ने कहा- "घोड़ों की कितनी जातियाँ होती हैं? उनका क्या परिमाण और क्या लक्षण हैं?" ____ कुमार- नाथ! सुनिये। रंग और चिह्नों के भेद से चौल्ला, हासा, हक्किया आदि अठारह प्रकार के घोड़े कहे गये हैं। घोड़े के अधिक से अधिक माप का परिमाण इस प्रकार है- पुरुष के बत्तीस अङ्गल का मुख, तेरह अङ्गुल का कपाल, आठ अङ्गुल का मस्तक, छह-छह अङ्गुल के कान, चौबीस अङ्गुल का हृदय, अस्सी अङ्गुल की उँचाई और उससे तिगुनी 1240 अङ्गुल परिधि होती है। इस परिमाण वाला घोड़ा यदि राजा के पास हो तो राज्य की वृद्धि करता है और दूसरे किसी के पास हो तो उसका मनोवाञ्छित सिद्ध करता है। एक घोड़े की पीठ पर ध्रुवावर्त (रोमों का गोल चक्कर) होता है, एक कपाल में, दो प्रथम प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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