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कुवलयमाला-कथा
[21] की महामूल्यवान् पूजा रचाई। पुत्र की माता ने तो स्त्रीजाति होते हुए भी इतना उत्कर्ष पाया जिसका अनुमान नहीं किया जा सकता।
राजा ने पण्डितों का भी आदर सत्कार किया। पाठ के कोलाहल को सहन करने वाले बालकों को इनाम देकर खुश किया। अपने बाहुबल से कमाये हुए धन से याचकों को सन्तुष्ट किया। इस प्रकार सारे शहर में खूब उत्सव मनाया। फिर ज्योतिषियों को बुलाकर आदर के साथ पूछा-"ज्योतिष के विद्वानों! पुत्रजन्म के समय के ग्रह और नक्षत्रों का क्या फल है?"
ज्योतिषी- सुनिये। आनन्द नाम का वर्ष है। शरद् ऋतु है। कार्तिक महीना है। कन्या राशि है। सुकर्मा नाम का योग है। लग्न पर सौम्य ग्रह की दृष्टि पड़ती है। सब सौम्य ग्रह बलवान् हैं। पापग्रह ग्यारहवें स्थान में हैं। सब सौम्य ग्रह और शुभ मुहूर्त देखने से मालूम होता है कि यह पुत्र चक्रवर्ती या चक्रवर्ती सरीखा होगा।
राजा- ज्योतिषियों! राशियाँ कितनी हैं और उनके फल क्या-क्या हौं?
ज्योतिषी - सुनिये। ज्योतिषशास्त्र के पण्डितों ने बारह राशियाँ बनाई हैंमेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धन, मकर, कुम्भ और मीन। अब इनमें उत्पन्न होने वाले पुरुष या स्त्री के गुण सुनिये1. मेष राशि में उत्पन्न होने वाला मनुष्य शूरवीर, कृतज्ञ, लम्बी जाँघ वाला,
प्रचण्ड, कार्य करने वाला, कोमल शरीर वाला, चञ्चल दृष्टि वाला और
स्त्रियों का प्यारा होता है। 2. वृष राशि में उत्पन्न होने वाला मनुष्य सत्यवादी, पवित्र, चतुर, भोगी,
दानी, मनोहर, सच्चे मित्र वाला और मनोहर गति वाला होता है। 3. मिथुन राशि में उत्पन्न होने वाला मनुष्य चञ्चल नेत्र वाला, मिष्टभोजी,
विषयों में आसक्त, कान का रोगी और धनवान् होता है। 4. कर्क राशि में उत्पन्न होने वाला मनुष्य शूरवीर, कृतज्ञ, दुबला-पतला,
गुरुजनों का प्रेमी, क्रोधी और अत्यन्त दु:खी होता है। 5. सिंह राशि में उत्पन्न होने वाला मनुष्य अभिमानी, क्षमावान्, माता-पिता
का दुलारा और सदा मद्य-माँस का सेवन करने वाला होता है।
प्रथम प्रस्ताव