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कुवलयमाला-कथा जन्मान्तर में यह मेरी क्या थी? यह ध्यान करते हुए उसके मन में रहा। आज ही पिताजी चम्पापुरी से काकन्दी आये हैं। यहाँ भवसागर श्री महावीर समवसृत हुए हैं। उनको वन्दन करने के लिए मैं भी जाऊँगा' उनसे इस वृत्तान्त- को पूछूगा कि यह हरिणी कौन है?, जन्मान्तर में यह हमारे किस सम्बन्ध में थी? इस प्रकार ध्यान करता हुआ चल दिया। वह और हरिणी दोनों इस समय समवसरण के बाह्य प्राकार के गोपुर के भीतर हैं, ऐसा कहते हुए तीर्थङ्कर के सम्मुख मणिरथकुमार आया और तीन प्रदक्षिणा देकर भगवान् को नमन करके प्रश्न किया "भगवन्! बताइये मुझ पर परम प्रेम धारण करने वाली यह हरिणी कौन है?" तब कुल को जाने हुए भगवान् ने समस्त प्राणियों के समूह को ज्ञान कराने के लिए उसको उन दोनों के पूर्वजन्म का आख्यान बताना प्रारम्भ किया। ___ यहीं भरतवर्ष में साकेतपुर है। वहाँ नाम से कान्ति से मदन नृप है। उसका पुत्र अनङ्गकुमार है। वहाँ वैश्रमण की भाँति वैश्रमण सेठ है। उसका प्रियङ्कर नामक पुत्र है और वह सौम्य, सुजन, कुशल, त्यागी, दयालु, श्रद्धालु है। वैश्रमण ने प्रातिवेश्मिक प्रियमित्र की पुत्री सुन्दरी के साथ पुत्र का पाणिग्रहण करा दिया। दोनों में बड़ी प्रीति हुई। परस्पर थोड़ा सा भी विरह हो जाने पर उन दोनों की जोड़ी उत्सुकचित्त वाली हो जाती है। एक बार भवितव्यतावश प्रियङ्कर के पटुतर शरीर के हो जाने पर वह सुन्दरी बहुत अधिक शोक के शङ्क से व्यथित हुई न खाती है न नहाती है न बोलती है और न घर का काम करती है, केवल- पति की संभावित मृत्यु से अधिक आभ्यन्तर सन्ताप से लोचनों में व्याप्त अश्रु- जल वाली दुःखी होती हुई रहती है। तब उस प्रकार के कर्म संयोग से प्राणों के क्षीण हो जाने पर प्रियङ्कर परलोक को चला गया। तब उसको मृत देखकर परिजन अत्यन्त ही विषण्णमन वाले हो गये। पिता ने प्रलाप करना प्रारम्भ किया___हा वत्स, हा गुणावास, हा सौभाग्यनिधि, प्रियङ्कर! तू कहाँ चला गया? मुझे उत्तर दे"।। ७३ ।।
स्वजनों ने उसके शव को संस्कार के लिए घर से निकालना आरम्भ किया, परन्तु स्नेह से मोहित मन वाली वह सुन्दरी उसका संस्कार नहीं करने देती है। वह पिता, माता, स्वजन और वयस्याओं के द्वारा विविध शिक्षाओं से
चतुर्थ प्रस्ताव