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________________ कुवलयमाला-कथा [193] शिक्षा दी हुई भी उस कुणप को नहीं छोड़ती है, केवल विलाप करती हुई यह अराजक है यह कहती हुई सुन्दरी उस मृत शरीर को आलिङ्गित करके स्थित रहती है। वह उस निर्जीव को भी सजीव ही देखती है क्योंकि स्नेह में मोह के कारण अन्धी दृष्टि वालों को विचार नहीं होता है।। ७४।। तब विषण्ण मनसा स्वजनों ने मान्त्रिक और तान्त्रिकों को बुलाया। उनसे भी कोई विशेष नहीं हुआ। स्वजनों द्वारा 'यह अयोग्य है', ऐसा विचार कर छोड़ी हुई वह उस दिन वैसे ही रही। दूसरे दिन वह शरीर शोथ से व्याप्त हो गया और उससे दुर्गन्ध फैल गयी। तो भी प्रेमपरवश हुई मृतक को आलिङ्गित करती हई परिजनों से निन्दित की जाती हुई भी सखियों से रोकी जाती हुई भी उसने इस प्रकार विचार किया- यह स्वजन ऐसा कहता है कि यह मृत है और यह आग्रही है, तो वहाँ जाना चाहिये जहाँ कोई भी स्वजन नहीं हो' यह ध्यान कर उस शव को शिर पर रखकर मन्दिर से निकलकर विस्मय, करुणा, बीभत्स और हास्य रस के वशीभूत लोगों से देखी जाती हुई वह श्मशान में आ गयी। वहाँ जीर्णशीर्ण वस्त्र से आवृत, धूल से सने शरीर वाली, खड़े केशों वाली, महाभैरवी व्रत को जैसे करती हुई भिक्षा लाकर जो उसमें सुन्दर होता उसे उसके आगे रखकर कहती थी-“हे प्रियतम! इसमें जो अधिक रमणीय हो उसे आप ग्रहण करलो पीछे का बचा हुआ जो विरूप हो उसे मुझे दे दो' यह कह कर खा लेती थी। इस प्रकार दिन-दिन आहार करती हुई कापालिक की बालिका की भाँति, राक्षसी के सदृश, पिशाची की तरह रही। तब उसके पिता प्रियमित्र ने पुरस्वामी से निवेदन किया- "हे देव! मेरी पुत्री ग्रह से गृहीत सी है। तो उसको कोई ठीक कर देता है तो उसके द्वारा वाञ्छित मैं उसे दे दूंगा।" यह पुर के मध्य नगाड़ा करवा दीजिये। विज्ञापन किये जा रहे इसको सुन कर कुमार ने सुना और विचार किया- 'अरे! बेचारी प्रेमपिशाच से ग्रस्त हुई है और अन्य से नहीं तो मैं इसको बुद्धि से प्रतिबुद्ध कर देता हूँ।' यह विचारते हुए उसने राजा को विज्ञापित किया "पिताजी! यदि आप आदेश दे देते हैं तो इस वणिक् पुत्री को सम्बोधित कर दूं' ऐसा विज्ञापित करने पर राजा ने कहा-"वत्स! यदि स्वस्थ कर सकते हो तो ठीक चतुर्थ प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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