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________________ कुवलयमाला-कथा [181] नरपति परिजनों और अन्त:पुर के सहित कुमार के सम्मुख आया। तब स्वदर्शन मात्र से ही उस कुमार को दृढवर्म महीपति ने कमलाकर को कमलबन्धु सूर्य के सदृश, कैरवसमूह को कैरवबन्धु चन्द्रमा के समान, घनसुहृद् वृन्द को घनाघन के तुल्य और कोकिलसमूह को वसन्त के सदृश अत्यन्त प्रमुदित मन वाला बना दिया। तब दोनों ही स्नेह के वशीभूत हुए मानस वाले और अश्रुपूर्ण लोचनों वाले हो गये। तब अत्यन्त विनयशाली कुमार ने माता-पिता के दोनों चरणों को अद्वन्द्व भक्ति से प्रणाम किया। उन्होंने कहा-"वत्स! तुम बहुत ही कठोर हृदय वाले बन गये। हम दोनों फिर तुम्हारे स्नेहाधिक्य से प्रसृत दुःसह विरहाग्नि से प्रतप्त दु:खी बने हुए सजीव भी अपने आपको मृततुल्य ही मानते हुए रहे। तो वत्स, तुम हमारे जीवन से चिरञ्जीव रहो। तब तुम अश्व से अपहृत किये गये कहाँ चले गये और कहाँ रहे? यह सब भी स्वरूप बताओ।" यह सुनकर कुमार ने जहाँ-जहाँ भ्रमण किया, जो-जो देखा और अनुभूत किया वह सभी बता दिया। इधर मध्याह्न के अवसर पर मागध द्वारा निवेदन किये जाने पर वहीं स्नान और भोजन किये हुए दृढवर्म और कुवलयचन्द्र सुख से क्षण भर बैठे रहे। तब दृढवर्मपुत्र कुमार ज्योतिषी द्वारा बताये गये शुभ मुहूर्त में अग्रगामी हाथी की पीठ पर बैठे हुए भूमिपति के पीछे पीछे चलता हुआ दुर्वार गज और अश्वों से वैरियों का वारण करने वाले मनोरम रथसमूहों और योद्धाओं के साथ बजाए जाते हुए वाद्यवृन्दों की ध्वनि से गगन को गुञ्जायमान करता हुआ, आगे किये जाते हुए मङ्गलाचार को ग्रहण करता हुआ, दोनों ओर से बन्दीजनों की मण्डली द्वारा की जाती हुई स्तुति को सुनता हुआ, पद-पर दीन याचकों को दान करता हुआ, जयकुञ्जर पर आरूढ हुआ, बनाये हुए मोतियों की शोभा से प्रकाशित हुए मञ्चों को देखता हुआ, वृद्धाङ्गनाओं से आशिषों और अक्षत अक्षतों को ग्रहण करता हुआ सातभूमि वाले विशाल महल में पहुँचा।। २०-२५ ।। उसी मुहूर्त में श्रीदृढ़वर्म ने सुवर्ण के आसन पर बैठा कर जय जय शब्द से व्योममण्डल को गुञ्जायमान के समय उत्तम तीर्थों से लाये गये जल से भरे हुए सुवर्ण निर्मित कलशों से सब के सामने कुमार का युवराज के पद पर अभिषेक कर दिया। तब कुमार को राजलोक ने नमस्कार किया। राजा ने कहा "वत्स चतुर्थ प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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