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चतुर्थ प्रस्ताव
इसके पश्चात् द्वारपाल के द्वारा निवेदित किए हुए श्री दृढवर्मा नृपति के लेख वाहक ने प्रवेश करके कुमार को प्रणाम करके और लेख को अर्पित करके कहा-"देव! श्री पितृचरण आपको बुला रहे हैं।" तब कुमार ने प्रथम लेख को प्रणाम कर और खोलकर वाचन किया 'स्वस्ति, अयोध्यापुरी से महाराजाधिराज श्री दृढवर्मा देव विजयपुरी में महेन्द्र सहित दीर्घायु पुत्र कुवलय कुमार को सप्रेम प्रगाढ आलिङ्गित करके आदेश देते हैं कि यहाँ तुम्हारे दुःसह विरह से जैसे मुझे जल से बाहर फेंके हुए मत्स्य के समान क्षणमात्र भी सुख का अवकाश नहीं है, वैसे तुम्हारी माता और पुरीजन को। अतः तुमको सत्वर आकर अपने दर्शन-जल से जल-सेचन से पादप के तुल्य वियोग से प्रतप्त मुझ को सींचना चाहिए।' कुमार ने कहा-"प्रिये! हमको यह पिताजी का आदेश है, तो क्या करना चाहिये?" उसने कहा-"जो आपको रुचिकर हो वह करना ही चाहिये।" तब कुमार ने उठकर महेन्द्र के साथ श्री-विजयसेन को इस प्रकार विज्ञापित किया-“हे देव! मुझे आये हुए बहुत दिन हो गये और माता-पिता उत्कण्ठित हैं, अतः कृपा करके मुझ को भेज दीजिये।" तदनन्तर नृपति के द्वारा विसष्ट ज्योतिषी के कथित मुहूर्त में माङ्गल्य विधान किये हुए नासिका से निःसृत स्वर के आधार पर आगे पैर रक्खे हुए जिन को नमस्कार किये हुए जयकुञ्जर गज पर आरूढ होकर अनेक सेवक लोगों से घिरे हुए महेन्द्र के साथ प्रमुदितमना कुमार ने पुरी से निकलकर बाहरी भूमि पर प्रस्थानोचित मङ्गल विधि सम्पन्न की।
इसके पश्चात् तत्त्वालोकन में धी को बद्ध की हुई हर्ष और विषाद से पूर्ण लोचनों वाली उस नृपति-पुत्री ने माता को नमस्कार करके कहा कि "हे माता
चतुर्थ प्रस्ताव