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________________ [172] कुवलयमाला-कथा आज्ञा हो वह मुझे स्वीकार है।" पाणिग्रहण का संवाद सुन कुवलयमाला का मुखकमल अत्यन्त प्रफुल्लित हो गया। वह हर्ष के कारण और भी कान्ति वाली हो गई। उसके सब शरीर में रोमाञ्च हो आया। उसका चिरकाल का चिन्तित मनोरथ सफल हो गया। वह अत्यन्त हर्षित होने के कारण शरीर में, घर में और तीन लोक में नहीं समाती थी। विवाह दिन निकट आ गया। राजा के आदमी भोजन सामग्री के लिए धान्य लाने लगे। भाँति-भाँति के पक्वान्न तैयार होने लगे। जगह-जगह मण्डप और मड़वा और विवाह वेदी तैयार होने लगी। राजा ने दूतों के हाथ सर्व स्वजन तथा अन्यान्य राजाओं को कुङ्कम-पत्रिकाएँ भेजीं। भाई बन्दों को निमन्त्रित किया, महलों को सजवाया। इतने में विवाह का दिन आ गया, आभूषण बनवाये तथा नगरी को चारों ओर से खूब सजाया। इस प्रकार सभी लोग विवाह की धूम-धाम में लग गये। इतने विवाह का दिन मानो निधि प्राप्त करने का दिन आया। उस दिन वृद्ध स्त्रियों ने बिना बींधे हुए आया मोतियों का सुन्दर स्वस्तिक बना कर, उसके ऊपर बाजौठ बिछाकर कुमार को पूर्व की ओर मुँह करके बिठलाया और मङ्गल स्नान कराया। फिर कुमार ने शरीर पर विलेपन करके कोरे स्वच्छ सदृश (दोनों छोर वाले) वस्त्र पहने, मस्तक में सिद्धार्थ गोरोचन का तिलक लगाया, सुगन्धी फूलों की माला गले में पहनी और दाहिने हाथ से माङ्गलिक मौर बाँधा। कुमार इस प्रकार तैयार होकर प्रौढ़ जनों के साथ जयकुञ्जर हाथी पर आरूढ हुआ। उसके पीछे महेन्द्रकुमार तथा अन्य राजपुरुष चले। आगे बढ़ने पर बन्दी जनों के द्वारा स्तुति किये जाने वाले कुमार के गुण समूह से तथा मृदङ्ग, शङ्ख, पणव, वेणु और वीणा के प्रचुर शब्दों से दिशा-मण्डल गूंज उठा। उस समय कुमार के मस्तक पर सफेद छत्र शोभायमान था और वेश्याओं का नृत्य हो रहा था। इस प्रकार कुमार ने शीघ्र ही आकर विवाह मण्डप को अलंकृत किया। जब लग्न का मुहूर्त आया तो सफेद वस्त्र और माङ्गलिक आभूषणों से भूषिता कुवलयमाला का हाथ ब्राह्मणों ने कुमार के हाथ में दिया। कुमार ने उसे ग्रहण किया। उस समय सौभाग्यवती स्त्रियाँ गीत गाने लगीं, बाजे बजने लगे, उनके शब्द दिशाओं में फैल गये। शङ्खों की ध्वनि हुई, झालर बजने लगे, ब्राह्मण वेद-पाठ बोलने लगे। फिर चार मङ्गलों की प्रवृत्ति हुई। इस भाँति पाणिग्रहण महोत्सव समाप्त हुआ तो दम्पती ने गुरु-जनों को नमस्कार किया और दूसरी सब रीतियाँ पूर्ण की। इसके अनन्तर गङ्गा किनारे के रेतीले प्रदेश में राजहंस के जोड़े के समान, यह दम्पती विविध तृतीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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