________________
कुवलयमाला-कथा
[161] का एक चरण कागज पर लिखकर राजद्वार में लटकाया है। उस चरण के आधार पर जो पुरुष दूसरे तीन चरण रचकर गाथा पूरी कर देगा, वही उसका पति होगा, दूसरा नहीं। उसने ऐसी प्रतिज्ञा की है। इसलिए सब राजपुरुष उस गाथा हो पूर्ण करने के लिए अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार विचार कर रहे हैं।"
कुमार- कोई पुरुष उस गाथा के तीन चरण रचकर उसे पूरा करे, परन्तु राजकुमारी के विचार से वह पूरी हुई है या नहीं, इसके लिए क्या सबूत है?
राजपुरुष- केवल कुवलयमाला ही उस गाथा को पूरी जानती है। उसने उसके बाकी के तीन चरण स्वयं लिखकर, लिफाफे में डाल कर उसके ऊपर राजा की सील-मुहर कराकर कोशागार में उसे रखा है।
कुमार ने सोचा- अहो, ठीक मायादित्य की माया प्रगट हुई है।
इतने में राजद्वार में लोगों के हृदय क्षब्ध हो उठे, जैसे प्रलय काल उपस्थित हो गया हो। कुमार विचार करने लगा-'बेमौके यह क्या उत्पात मच गया? 'शान्ति करते उलटी बलाय आ लगती है।' यह कहावत सच हो गई।' इस प्रकार विचारता हुआ कुमार ज्यों ही उस गाथा के निरूपण के लिए गया, त्यों ही आलानस्तम्भ को उखाड़कर तथा पैर के मजबूत बन्धन को तोड़कर अत्यन्त मद से मत्त जयकुञ्जर नामक हाथी को अपने सामने आता हुआ देखा। पर्वत की भाँति ऊँचा और हिमालय की तरह सफेद वह हाथी गति के वेग से हवा को मात करता था। उस साक्षात् यमराज के समान क्रोधी हाथी को देखने के लिए राजा कुवलयमाला सहित महल की अगासी पर चढ़ा। राजा ने वहाँ से देखा कि हाथी कुवलयचन्द्रकुमार के पास ही आ पहुँचा हैं। यह देख उसने चिल्लाकर कहा-“भद्र! तू बालक है, जल्दी पीछे हट जा।" राजा की यह बात सुनकर क्रोध से लाल नेत्र वाला तथा तेज से दीप्त कुमार ने जयकुञ्जर को क्षण भर में वश में कर लिया। वह उसके दोनों दाँतों पर दोनों पैर रखकर उसके कुम्भस्थल पर सवार हो गया। फिर वहीं ठहर कर कुमार ने कुवलयमाला की समस्या वाली गाथा इस प्रकार पूर्ण की
कोसंबि धम्मनंदण-मूले दिक्खा तवं च काऊण। कयसंकेया जाया, पंचवि पउमे विमाणम्मि।।
तृतीय प्रस्ताव