________________
[162]
कुवलयमाला-कथा अर्थात्-"कौशाम्बी नगरी में, धर्मनन्दन गुरु के पादमूल में दीक्षा ग्रहण करके तथा तप करके जिन्होंने संकेत किया था ऐसे पाँचों पद्म विमान में उत्पन्न
हुए थे।"
यह गाथा सुनकर 'इन्होंने मेरी समस्या पूर्ण की' कह कर कुवलयमाला ने मकरन्द के गन्ध में लुब्ध होकर आये हुए भौंरों के समूह से गुञ्जायमान सफेद फूलों की वरमाला कुमार के लिए भेजी। कुमार ने वह माला अपने गले में धारण की। राजा ने शरीर पर रोमाञ्च का कवच धारण करके कहा-"बेटी कुवलयमाला! तू ने उत्तम वर को पसन्द किया।" समस्या की पूर्ति हो जाने से राजपुरुषों ने जय, जय ही ध्वनि की और कहा "अहो! यह पुरुष कोई दैवी प्रभाव वाला है।"
इसके पश्चात् अनुपम गुणों के समूह को देख कर हर्ष से पूर्ण देवों ने अदृश्य रह कर आकाश से कुमार पर पुष्प-वृष्टि की। संसार में भाग्यशाली पुरुषों की क्या कमी है?
इसके पश्चात् राजा दृढवर्मा द्वारा पहले ही से भेजा हुआ मालवराज का पुत्र महेन्द्रकुमार, जिसे उसने पुत्र मानकर रखा था, एकदम जयकुञ्जर हाथी के पास आकर बोला-"चन्द्रवंश में मोती के समान, कलाओं के कुलधर के समान, दानचतुर, प्रणयी जनों के प्यारे, महाराज दृढवर्मा के पुत्र कुवलयचन्द्रकुमार! तुम्हारी जय हो, जय हो।"
ये शब्द सुनकर कुमार ने महेन्द्रकुमार को पहचान लिया। इसलिए उसे बड़े भाई के समान समझते हुए प्रीति से प्रसन्न मन होकर कुमार ने उसे जयकुञ्जर के कन्धे पर बिठलाकर अपने पिता-माता का कुशल-समाचार पूछा। उसकी कुशल पूछी। उस समय विजयसेन राजा भी कुमार के पास आ गया और बोला-"ओहो, कैसे आश्चर्य की बात है? प्रथम तो कुमार स्वरूपवान् और भाग्यवान् है, दूसरे इसने जयकुञ्जर हाथी को वश में किया, तीसरे आकाश से पुष्प-वृष्टि हुई, चौथे इसने समस्या की पूर्ति की, पाँचवें मेरी पुत्री इस पर अनुरक्त हुई और छठे ये राजा दृढवर्मा के पुत्र ठहरे। ये सब आश्चर्य चित्त में चमत्कार उत्पन्न करते हैं। कुवलयमाला को जिसे प्राप्त करना चाहिए था, उसने उसी को प्राप्त किया। पुत्री! मालूम होता है
तृतीय प्रस्ताव