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कुवलयमाला-कथा
[153] के प्रहार से साँप नीचे देखने लगता है। उसने सोचा-'ओहो, कैसे आश्चर्य की बात है कि इस निर्दय आदमी ने ऐसे सत्पुरुष के सामने मुझे मारा और कठोर वचन कहे। अथवा मैं प्रमाद में मग्न था, सो इतने मेरा भला ही किया है. क्योंकि जरा मृत्यु और महाव्याधियों के दुःख से दुःखी अनेक प्राणी इस घोर और बीहड़ संसार रूपी अरण्य में परिभ्रमण करते हैं। उनमें से कोई-कोई भव्य प्राणी कर्म की ग्रन्थि भेद कर अमूल्य और दुष्प्राप्य सम्यक्त्व-रत्न को पाते हैं। वे संसारसमुद्र में सम्यक्त्व रूपी पाटिया पाकर भी यदि प्रमाद करते हैं तो वह अपनी आत्मा को अत्यन्त दुःख उत्पन्न करने वाला होता है। इस प्रकार विचार करतेकरते सेनापति का मन चिन्ता से व्याप्त हो गया। उसकी दोनों आँखें आँसओं के जल से भीग गईं। वह साँसे लेने लगा उसका मुख दीन हो गया। यह सब हाल देख कुमार बोला-"भद्र! बात क्या है? बतलाओ तो।"
सेनापति ने लम्बी निःश्वास छोड़कर कहा-"कुमार! सुनिये। इस भरतक्षेत्र में संसार को आनन्द देने वाली, गुणों से सुन्दर, पाप रहित तथा पृथ्वी रूपी स्त्री के तिलक की शोभा के सदृश रत्नपुरी नाम की एक श्रेष्ठ नगरी है। वह नगरी स्वर्ग की नगरी की तरह उग्रधन्वा' से भरी हुई, आकाश-लक्ष्मी की भाँति मङ्गल' सहित अलका नगरी की तरह धनद सहित, लङ्कापुरी की नाई सदानवा, वन की भूमि की तरह सन्नेत्राकलिता' सुन्दर अशन वाली पुन्नाग सहित सनारङ्ग और श्रीफलों से मनोहर थी। उसमें समस्त भूतल की रक्षा करने वाला तथा समस्त राजाओं को नमाने वाला रत्नमुकुट नामक राजा था। उसके दर्पफलिक और भुजफलिक नाम के दो लड़के थे। राज्य का पालन
१. शिव और उग्र धनुर्धर। २. मङ्गल नामक ग्रह और माङ्गलिक कार्य। ३. कुबेर और धन देनेवाले आदमी। ४. दानवों सहित और सदा नयी। ५. अच्छे नेत्र जाति के वृक्षों के सहित तथा सुन्दर नेत्रवाली स्त्रियों के सहित। ६. एक प्रकार के वृक्ष और भोजन। ७. एक प्रकार के वृक्ष और उत्तम पुरुष। ८. नारङ्गी वृक्ष और कामी पुरुष। ९. नारियल और लक्ष्मीरूपी फल।
तृतीय प्रस्ताव