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________________ [146] कुवलयमाला-कथा रख दिया। कुमार ने उसके रूप और शोभा से विरुद्ध भील का भेष देखकर कुछ आश्चर्य युक्त हो विचार किया- ' रूप को धिक्कार है, लक्षण निष्फल हैं, शास्त्र अप्रामाणिक हैं, सब गुण निस्सार हैं तथा वेष और आचार भी प्रमाणतारहित हैं। सब कुछ उलटा है, अन्यथा कहाँ तो यह शुभ लक्षण तथा व्यञ्जनों से सुशोभित रूप और कहाँ तुच्छ पुरुष बताने वाला यह भील का वेष' ऐसा सोचकर कुमार ने कहा- -" एणिका ! यह क्या बात है?" एणिका - कुमार! मैं इन्हें सदा वन में घूमता देखती हूँ परन्तु विशेष वास्तविक बात कुछ भी नहीं जानती । कुमार- एणिका ! यह भील - भीलनी का जोड़ा नहीं है, सिर्फ भील का भेष धारण किया है। यह जोड़ा कोई मामूली नहीं है । एणिका - यह कैसे जाना जाय ? कुमार- सामुद्रिक शास्त्र में बताए हुए लक्षणों से जाना जा सकता है । एणिका - क्या सामुद्रिक शास्त्र आप जानते हैं? हाँ तो इस जोड़े की बात छोड़िये, पहले सामान्य रूप से पुरुष के लक्षण बतलाइये । कुमार- उन लक्षणों को संक्षेप से कहूँ या विस्तार से ? एणिका - विस्तार से तो यह शास्त्र एक लाख श्लोक प्रमाण है और संक्षेप से कहा जाय तो घटते घटते अन्त में एक हजार या एक सौ श्लोक प्रमाण भी हो सकता है। तो पहले कुछ विस्तार से कहता हूँ । सुनो जिस पुरुष की हथेली में या तलुवे में पद्म, वज्र, अङ्कुश, छत्र, शङ्ख और मत्स्य आदि की रेखाएँ दिखाई देती हों उसे लक्ष्मीपति समझना । भाग्यवान् पुरुषों के नख ऊँचे विस्तार वाले, लाल, चिकने और दर्पण समान तेजस्वी (चमकीले) होते हैं। वे धन के कारण तथा सुख देने वाले होते हैं। नख सफेद हों तो उसे यति के समान जानना और पीले हों तो इस जन्म में दुराचारी समझना। जिसके दाँत शुद्ध, सम अनीदार तथा चिकने हों उसे शुभ समझना और इससे उल्टे हों तो दुःख के कारण समझना चाहिए। जिस मनुष्य के दाँत थोड़े या बहुत हों, जो गर्भ से ही दाँत सहित उत्पन्न हुआ हो या जिसके चूहे सरीखे दाँत हो वह पापी कहा गया है। जिस मनुष्य के ( हाथ के ) अँगूठे में तृतीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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