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________________ कुवलयमाला - कथा [145] बालिका से पूछा था कि 'तुम कौन हो ? कहाँ से आई हो? और इस वन में रहने के लिए वैराग्य होने का क्या कारण है?' इसके उत्तर में मैंने इसका सारा हाल कह सुनाया ।" यह सब वृत्तान्त सुनकर कुमार खड़ा होकर विनय के साथ बोला" राजकीर ! तुम मेरे सहधर्मी हो तुम्हें अभिवन्दन करता हूँ ।" एणिका बोली - " मेरा वन-वास आज सफल हुआ कि सम्यक्त्व को धारण करने वाले आप जैसे श्रावक के दर्शन हुए। दोपहर का समय हो गया है । उठिये, चलिए स्नान करने चलें । " इतना कहकर बालिका आश्रम के पास के जलाशय से पानी छान कर आई। उससे स्नान करके धुले हुए कोमल सफेद वल्कल पहने । फिर एक पर्वत की गुफा में विराजमान आदिनाथ भगवान् की प्रतिमा का जल से अभिषेक करके जल और स्थल में उत्पन्न हुए कमलों से पूजा और वन्दन की । इसी प्रकार कुमार स्नान और पूजन करके भगवान् की स्तुति करने लगा - "नाभिराजा के पुत्र ! आप गुणों से अमेय हैं और संसार का उच्छेदन करने वाले हैं अतः मेरे संसार की भ्रान्ति के भय का नाश कीजिये । वृषभ के चिह्न वाले जगन्नाथ ! देवों के देव !! कामदेव स्वरूप भगवन् ! वास्तव में देखा जाय तो मुझ पर प्रहार करने वाले उस (कामदेव) का संहार करने वाले तुम्हीं हो। " कुमार इस प्रकार स्तुति करके एणिका और राजकीर के साथ झोंपड़ी में आया तथा अत्यन्त स्वादिष्ट और मनोहर पके फल खाये । इसके पश्चात् कुमार ने वहीं रह कर विविध प्रकार के शास्त्र, अनेक कलायें, भिन्न-भिन्न देशों की भाषा तथा बहुत सी कथा - कहानियाँ सुनाकर एणिका और राजकीर को प्रसन्न किया। एक बार वहाँ एक भील - भीलनी का जोड़ा आया। उसके शरीर का रंग काला था। उसने मोर के पंखों का कर्णभूषण बनाया था । तरह-तरह के वृक्षों के फूलों से उसका केश- पाश गुँथा हुआ था । वह जोड़ा वहाँ आकर राजकुमार, बालिका और राजकीर को नमस्कार करके दूर शिला पर बैठ गया । एणिका ने उसका कुशल- समाचार पूछा । सब बातों का उत्तर उसने मस्तक झुका कर ही दिया । मुँह से कुछ भी न बोला । फिर भील ने अपना धनुष् जमीन पर तृतीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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