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कुवलयमाला-कथा
[147] या मूल में जौ का चिह्न हो वह धनवान् होता है। जिसके मस्तक पर दाहिनी तरफ दक्षिणावर्त होता है, लक्ष्मी सदा उसकी मुट्ठी में रहती है। जिसके बाई तरफ दक्षिणावर्त होता है उसे बुढ़ापे में भोग (सुख साधन) प्राप्त होते हैं, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है। अब उन लक्षणों को संक्षेप से मैं एक ही शोक में कहता हूँ सो सुनो-गति (चाल की अपेक्षा रंग श्रेष्ठ है) और स्वर की अपेक्षा श्रेष्ठ है क्योंकि सत्त्व में ही सब कुछ रहा हुआ है।"
इस प्रकार सुनकर वह बाला बोली-"तुमने कहा सो सब सत्य है, परन्तु इस भील में तुमने क्या-क्या लक्षण देखे हैं?"
कुमार- 'एणिका ! मैंने जो लक्षण बताये हैं वे सब शुभ लक्षण इस पुरुष के शरीर में दीखते हैं। मेरे विचार से यह कोई महासत्त्ववान् पुरुष है। वह किसी कारण से भील का भेष बनाकर अपना असली रूप छिपाकर इस विन्ध्याचल के वन में रहता है।
यह बात सुनकर भील ने सोचा, 'यह आदमी पुरुष के लक्षण जानने में सचमुच कुशल है। अतः मुझे अब यहाँ अधिक देर तक रहना उचित नहीं है-जब तक इसने मुझे जान नहीं पाया तब तक यहाँ से चल देना ही श्रेष्ठ है।' यह विचार कर भील-भीलनी वहाँ से उठकर अपने स्थान पर चले गये। फिर एणिका बोली -" कुमार! तुम्हारी चतुराई का क्या कहना है, तुमने भील का भेष बनाये हुए को भी पहचान लिया।"
कुमार- यह तो मैं पहले ही जान चुका था, परन्तु अब उन्हें विशेष जानना चाहता हूँ। अतः सच्ची बात बताओ।
एणिका-कुमार! ये दोनों विद्याधर हैं। कुमार- तो इन्होंने ऐसा भेष क्यों धारण किया है?
एणिका- ये विद्याधर तुम्हें भी पहचानते हैं। पहले आदिनाथ भगवान् की सेवा में लीन हुए नमि और विनमि को धरणेन्द्र ने बहुत सी विद्याएँ दी थीं। उसमें कोई विद्या किसी प्रकार सिद्ध होती है कोई किसी प्रकार। सब के साधन करने के उपाय जुदे-जुदे हैं और कितनी ही जितेन्द्रिय होकर श्मशान में साधी
तृतीय प्रस्ताव