SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [124] कुवलयमाला-कथा कहकर उसी दिन से आगे होकर ले जाने लायक माल खरीद करना प्रारम्भ किया। अनगिनती चीजें लेकर, ज्योतिषी के द्वारा बताये हुए शुभ मुहूर्त में समुद्रदेव की पूजा करके, तपस्या से गुरुता को प्राप्त हुए गुरु को नमस्कार करके, श्री अरिहंत भगवान् की पूजा करके सेठ को प्रणाम करके और उससे आज्ञा लेकर तथा पञ्च नमस्कार मन्त्र का ध्यान करके सागरदत्त जहाज पर चढ़ा। जहाज का पाल ताना गया। अनुकूल हवा चलने लगी। जहाज समुद्र को पार करके यवन द्वीप में आ पहुँचा। वहाँ खरीद-बेच करके सागरदत्त ने सात करोड़ द्रव्य कमाया। फिर वह प्रसन्नचित्त होकर अपने देश की ओर रवाना हुआ। जहाज मध्य समुद्र में आया कि कर्म के योग से वर्षा ऋतु न होने पर भी काजल की तरह काले और जल से भरे हुए बादल आकाश में चढ़ आये। उनके अन्धकार से सारा आकाश मण्डल ढंक गया। नक्षत्र आदि दिखाई न देने से खलासी दिशा-मूढ हो गये। जाने की उतावली से चलाया हुआ जहाज किसी पर्वत की खड़क चट्टान से टकरा कर स्त्री को बताई हुई बात की तरह तत्काल भग्न हो गया। उसमें बैठे हुए सब आदमी मर गये, केवल सागरदत्त ही जहाज पटिया मिल जाने से बड़ी -बड़ी तरङ्गों से प्रेरित होकर कठिनाई से पाँच दिन रात में चन्द्रद्वीप में आ पाया। वहाँ आकर उसे मूर्छा आ गई। उसकी आँखें मूंद गई। किनारे के किसी वृक्ष के नीचे क्षण भर हवा लगने से वह होश में आया। प्यास के मारे उसकी चित्तवृत्ति इसलिए चञ्चल हो रही थी और जोर की भूख लगने से वह इधर-उधर घूमने लगा। किसी जगह उसे नारियल, नारंगी, बिजोरा, फालसा और अनार आदि के फले हुए वृक्ष दिखाई दिये। उन फलों से आहार करके आगे बढ़ा तो चन्दन और लोंग का लतागृह देख कर उसके मन में कुतूहल हुआ। वह उसी जगह जाने लगा। इतने में किसी का शब्द उसके कान का अतिथि हुआ- सुनाई दिया। यह शब्द सुनकर उसने सोचा 'इस प्रदेश में पहले तो किसी आदमी का आवागमन ही नहीं मालूम होता, फिर यह किसी बाला का शब्द कहाँ से सुनाई दिया? ओहो! मैं भी कहाँ आ फँसा हँ? जो कहानियों में नही सुना जाता और जो कभी स्वप्न में भी दिखाई नहीं देता वही भाग्य के योग से प्राप्त हो जाता है।' यह सोच कर उसने अच्छी तरह देखा तो केले के वृक्षों के झुण्ड में लगे हुए अशोक वृक्ष के नीचे, सामान्य रूप से अतिशय रूपवती और गुणों से सुन्दर मानो कोई तृतीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy