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________________ [122] कुवलयमाला-कथा अर्थात् यदि मैं एक वर्ष में सात करोड़ धन न कमा सकूँगा तो ज्वालाओं की माला से व्याप्त अग्नि में अवश्य प्रवेश करूँगा । , इस प्रकार लिखकर सागरदत्त निवास गृह से बाहर निकल कर, शहर के पानी निकलने के रास्ते दक्षिण की ओर रवाना हुआ। वह चलते-चलते भिन्न- भिन्न देशों का हाल जानता हुआ दक्षिण समुद्र के किनारे शोभायमान जयश्री नामकी नगरी के पास आया । वह नगरी के बाहर एक पुराने बगीचे में अशोकवृक्ष के नीचे रास्ते की थकावट मिटाने की लिए बैठ गया । वह विचारने लगा-'मैं मच्छ, कच्छप, मगर और हिलोरों से भयङ्कर इस समुद्र को जहाज में बैठकर पार करूँ ? या चामुण्डा देवी के पास जाकर तीक्ष्ण कटार से दोनों जाँघों को चीरकर उनमें से निकलते हुए रक्त से पृथ्वी को लथपथ करके, माँस के टुकड़ों से बलिदान दूँ? अथवा दूसरे सब उद्योगों को लात मार कर रात-दिन रोहणाचल पर्वत से धातुवाद (रसायन बनाना) सीखूँ? इस प्रकार के संकल्प विकल्पों से सागरदत्त का मन व्याकुल हो गया । इतने में उसे एक जगह नारियल के वृक्ष के नीचे उगता हुआ एक नवीन अङ्कुर दिखाई दिया । उसे देख कर सागरदत्त को नया सीखा हुआ 'खन्यवाद' याद आया । उसने 'नमो धरणेन्द्राय नमो धनदाय नमो धनपालाय 'यह मन्त्रोच्चारण कर जमीन खोदी तो उसे एक निधि दीख पड़ी । ज्यों ही उसने निधि लेने का विचार किया, त्यों ही आकाशवाणी हुई- 'वत्स ! यद्यपि तूने समस्त खजाना देख लिया है, तो भी तू इसमें से थोड़ा - एक खोवा भर - धन पूञ्जी के लिये ले ।' यह सुनकर सागरदत्त ने उसमें से सिर्फ एक खोवा रुपया लिये । वह खजाना भी तत्काल गायब हो गया। उसने उस धन को कँधे के कपड़े के छोर में बाँध लिया। फिर उस उत्तम वणिक् ने विचार किया- 'देखो, भाग्य कैसा चपल है ! दैव पहले तू ने खजाना दिया, फिर क्यों ले लिया? तेरे इस बर्ताव से मुझे मालूम हुआ कि तेरी गति चञ्चल है। तो भी, यदि तू (दैव) मध्यस्थ वृत्ति धारण करेगा तो मैं इतने ही से सात करोड़ के छोर द्रव्य उपार्जन करके अपनी प्रतिज्ञा को सच्ची कर दिखाऊँगा ।' ऐसा विचार कर जिसके मन में सन्तोष हो गया है, ऐसा सागरदत्त उस नगरी में प्रविष्ट हुआ । उसने नगरी में सरल और स्वभाव से सुशील एक वृद्ध वैश्य को देखा। उसे देखकर वह विचार करने - ' इसका चेहरा मनोहर है, यह बड़ा व्यापारी और सब का मुखिया जान तृतीय प्रस्ताव । लगा
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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