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________________ कुवलयमाला-कथा [119] राजकुमारी होगा, एक सिंह होगा और दो राजकुमार होंगे। कुछ भी समझ में नहीं आता कि हमें कैसे बोधि-लाभ होगा? अपना संगम कहाँ होगा? इसलिए पद्मकेशर! भगवान् ने कहा है कि तू सब से पीछे स्वर्ग से चय होगा। इसलिए तुम अवधिज्ञान से जानकर हम चारों जहाँ उत्पन्न हों, वहाँ आकर हमें सम्यक्त्व देना। हाँ, स्वर्ग की अप्सराओं के स्तन स्पर्श के सुख में मग्न होकर इस समय कही हुई बात भूल मत जाना।" यह सुनकर पद्मकेशर बोला-"मैं तुम्हें सम्यक्त्व दूंगा, किन्तु यदि तुम्हारा मन उस समय मोह से मोहित हो जायगा और मेरी बात न मानोगे तो उसका क्या उपाय करना होगा?" पद्मकेशर की बात सुन चारों बोले-"तुमने यह अच्छी याद दिलाई। अभी इसका उपाय करना चाहिए। अपने पूर्व भव के मनुष्य का आकार रत्नों का बना कर एक जगह रख देना चाहिए। वे आकार मौका आने पर हमें दिखलाना। इससे उन आकारों को देखने से शायद पूर्व जन्म का स्मरण हो जाय और धर्म में प्रीति हो जावे।" ऐसा कहकर उन्होंने मध्यलोक में उसी वन में, जहाँ सिंह उत्पन्न होने वाला था, अपने आकार एक गुफा में रख दिये और उस गुफा के द्वार पर एक बड़ी भारी शिला अडा दी। फिर पाँचों अपने, विमानों में आकर वहाँ की लक्ष्मी को भोगने लगे और दिव्य आनन्द का अनुभव करने लगे। कुवलयचन्द्र कुमार! इसके बाद पाँचों में से पद्मप्रभ देव के शरीर की कान्ति क्षीण हुई। मुख मुरझा गया। मन दीन हो गया। अन्त में पवन से प्रतिहत प्रदीप की तरह वह तत्काल बुझ गया- मर गया। जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में शत्रु-राजाओं को कँपा देने वाली चम्पा नाम की नगरी है। उसमें लगे हुए चम्पक वृक्षों की सुगन्ध से नन्दनवन का अनुभव होता है। उस नगरी में पवित्र बुद्धिवाला मनुष्यों में मुकुट के समान धनदत्त नाम का एक सेठ है। वह अपनी लक्ष्मी से कुबेर की लीला का अनुभव करता है। इस सेठ की विष्णु की लक्ष्मी जैसे प्रिया है उसी प्रकार, लक्ष्मी नाम की प्रिया है। वह देव वहाँ से चय कर उसकी कोख में आया। जब उसका जन्म हुआ तो सागरदत्त नाम रखा गया। पाँच धायें उसका पालन करती थीं। वह कान्ति, गुण और कलाओं के साथ बढ़ता-बढ़ता युवावस्था रूपी लक्ष्मी को प्राप्त हुआ। उसके पिता ने उसे समान आचार और स्वभाव वाली किसी वणिक् की श्री तृतीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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